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________________ १२४ इम सांभळ उत्तमां नरां रे लाल, राखौ देव गुरां री प्रतीत रे सुगुण नर। आसता राख आगै घणां रे लाल, गया जमारौ जीत रे सुगुण नर॥ भाव. १२५ वरण-नाग नतूआ तणौ रे लाल, मिंत्र तर्यो प्रतीत सूं पेख रे सुगुण नर। तौ उत्तम पुरुषां री प्रतीत सूं रे लाल, तिऱ्या तिरै नै तिरसी अनेक सुगुण नर॥ भाव. १२६ श्रीक्खू स्वाम कह्या भला रे लाल, दीपता वर दृष्टंत रे सुगुण नर। केयक तौ सूत्रे करी रे लाल, केयक बुद्धि उपजत रे सुगुण नर॥ भाव. १२७ उत्पत्तिया बुद्धि अति घणी रे लाल, स्वाम भीक्खू नीं सार रे सुगुण नर। स्वाम गुणां नौं पोरसौ रे लाल, स्वाम शासण सिणगार रे सुगुण नर॥ भाव. १२८ स्वाम दिशावान दीपतौ रे लाल, स्वाम तणी वर नीत रे सुगुण नर। आसता तास न आदरै रे लाल, ते अपछंदा अविनीत रे सुगुण नर॥ भाव. १२९ श्रीक्खू दीपक भरत मैं रे लाल, प्रगट्यौ बहु जन भाग रे सुगुण नर। स्वाम भीक्खू गुण संभरूं रे लाल, आवै हरख अथाग रे सुगुण नर॥ भाव. १३० ढाळ भली इकचाळीसमी रे लाल, आख्या दृष्टंत अनेक रे सुगुण नर। भीक्खू स्वाम प्रसाद थी रे लाल, 'जय-जश' करण विसेख रे सुगुण नर।। भाव. १. चेड़ा-कौड़िक के संग्राम में युद्ध करते समय घायल होने पर [वरुण - चेटक के रथिक नाग का दोहित्र, एकांत में जाकर अनशनयुक्त शुभ भावों के साथ मरण प्राप्त कर स्वर्ग में उत्पन्न हुआ। उसके मित्र ने भी श्रद्धापूर्वक उसी तरह किया, जिससे वह मरकर मनुष्य जाति में उत्पन्न हुआ। फिर महाविदेह में जन्म लेकर सिद्ध बुद्ध होगा। (भगवई श.७ उ. ९ सूत्र १९२ से २११) २. तै (क)। १४० भिक्खु जश रसायण
SR No.006279
Book TitleBhikkhu Jash Rasayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages378
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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