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१०९ वस्त्र-पात्र अधिका राखता रे लाल, आडा जडै कमाड़ रे सुगुण नर। ___मोल लिया थांनक माहै रहै रे लाल, इसडी थाप निरंतर धार रे सुगुण नर॥ भाव. ११० आज्ञा बारै पुन्य सरधता रे लाल, आज्ञा मैं पाप समाज रे सुगुण नर। ____काचौ पाणी पायां पुन्य सरधता रे लाल, प्रत्यख पोपांबाई रौ राज रे सुगुण नर।। भाव. १११ ते समज न पडै श्रावका भणी रे लाल, ज्यांरा मत माहै मोटी पोल सुगुण नर।
पिण आंधां मैं मूळ सूझै नहीं रे लाल, तांबा ऊपर झोळ रे सुगुण नर॥ भाव. ११२ कुगुरु निषेध्यां अविनीतड़ौ रे लाल, ऊंधा अर्थ करै विपरीत रे सुगुण नर।
ते सतगुरु नैं कुगुरु कहै रे लाल, नहीं विनय करण री नीत रे सुगुण नर॥ भाव. ११३ उण सूं विनय कियौ जावै नहीं रे लाल, तिण सूं बोलै कपट सहीत रे सुगुण नर।
कहै विनय कह्यौ छै सुद्ध साध नौ रे लाल, इणरै भ्यंतर खोटी नीत रे सुगुण नर। भाव. ११४ साधा नैं असाध सरधायवा रे लाल, बोलै माया सहीत रे सुगुण नर।
तिण नै बुद्धिवंत 8 ते ओळखै रे लाल, औ पूरै मतै अविनीत रे सुगुण नर? भाव. ११५ कहै-आचार मैं चूकै घणां रे लाल, म्हां सूं विनय कियौ किम जायरे सुगुणनर?
ते बुद्धि-हींण जीव बापड़ा रे लाल, न जाणै सूतर - न्याय रे सुगुण नर॥ भाव. ११६ बुकस पडिसेवणा भेळा रहै रे लाल, अवधि मनपर्यव केवळी अवंक रे सुगुण नर।
ते भेळा आहार करता संकै नहीं रे लाल, इण नै विनय करतांआवैसंकरेसुगुण नर॥भाव. ११७ देखौ अंधारौ अविनीत रैरे लाल, निज अवगुण सूझै नांय रे सुगुण नर। ___ विनय नौं तौ गुण पोतै नहीं रे लाल, तिण सूं पर तणौ औगुण देखायरे सुगुण नर॥ भाव. ११८ दर्शण-मोह उदय घणौ रे लाल, पूरौ विनय कियौ नहीं जाय रे सुगुण नर।
ओळखै अवगुण आपरौ रे लाल, ए उत्तमपणौ सुहाय रे सुगुण नर॥ भाव. ११९ ते कहै केवळी बुकस भेळा रहै रे लाल, मोह बळ्यौ तिण सूं नावै लैहर रे सुगुण नर।
लैहर आवै चित थिर नहीं रे लाल, ते जाणै निज कर्म हैं जैहर रे सुगुण नर॥ भाव. १२० बुकस पडिसेवणा कदै नहीं मिटै रे लाल, तीइ काळ रै माय रे सुगुण नर।
दोयसौ कोड सूंघटै नहीं रे लाल, चित्त अथिर सूं ते न मिटाय रे सुगुण नर॥ भाव. १२१ ज्यारै सूत्र तणी नहीं धारणा रे लाल, प्रकृति अतिघणी अजोग रे सुगुण नर।
ते थोड़ा मैं रंग-विरंग हुवै रे लाल, मोटौ दर्शणमोह रोग रे सुगुण नर॥ भाव. १२२ केका रै दर्शणमोह तौ दीसै घणौ रे लाल, पिण सैंणा घणा बुद्धिवांन रे सुगुण नर। ___ ते गुरु नैं सुणाय निसंक हुवै रे लाल, ज्यारै समगति रौ जोखो मत जांण रे सुगुण नर॥ भाव. १२३ दोष री थाप गुरां रै नहीं रे लाल, दोष रा डंड री थाप रे सुगुण नर।
और री कीधी थाप हुवै नहीं रे लाल, इम जांण निसंक रहै आप रे सुगुण नर॥ भाव.
भिक्खु जश रसायण : ढा. ४१
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