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३ तिम श्रावक कसाइ न सरिखौ, पाप सुणी कोई मत भिड़को।
चदर ले गयौ तसकर एक, एक दीधी प्राछित किण रो पेख।। ४ थांरा धणी रौ नाम नाथू होय? कहै - क्यांनै नाथू हुवै सोय।
मूळा दीयां कांइ हुवै त्यां नै, पूछ्यौ अमरसिंघजी रा साधा नैं। ५ पड़िया तसकर नै आफू खवायौ, ते तौ सेठ नों वैरी छै ताह्यौ।
खेत पाकां करसणी रै बाळौ, तिण रौ रोग मेट्यां फळ न्हाळौ। ६ ममता ऊतरी कहै प्रसीधी, दस वीगा खेती किण नैं दीधी।
सावज्ज दांन रा तूं करै त्याग, म्हांनै भांडवा नै कै वैराग"?॥ . ७ जल लोट्यौ सूंपजो म्हारै हाट, ज्यूं पुन कहै सांनी रै वाट।
पडिमाधर नै दीयां स्यूं होय? लेण वाळा . ते अवलोय।। ८ कोई काचौ पांणी किण नैं पावै, कोइ पारकी खाई३ लुटावै।
धन दीयौ अव्रती नै ताहि, लाय मासूं न्हाख्यौ लाय माहि' ।। ९ घृत - तंबाकू भेळ्यां न मेळ, ज्यूं व्रत अव्रत मैं नहीं भेळ'"।
आंख जीभ ओषध रौ दृष्टंत, व्रत-अव्रत पर उपजंत"।। १० सोर अग्नि न्यारा सूं न न्हास, ज्यूं व्रत अव्रत जूजूआ तास ।
सोमल मिश्री पसारी रै न्यार, व्रत अव्रत जुआ विचार ।। ११ कहै ग्रहस्थ रौ है छंद, छांदा माहै तौ धूल है मंद।
खांड घृत मैदौ खरा होय, ज्यूं चित्त वित्त पात्र सुजोय।। १२ थांनै असाध जांणै दीयां दांन, उत्तर, खाधी मिश्री विष जांन22।
आक थोड' रौ दूध असुद्ध, सावज दया अनुकंपा न सुद्ध।। १३ लाय बुझायां मिश्र थापंत, तौ नाहर मार्यां न पाप एकंत। __वले कुरणा घणा री आंण, कसाइ नैं माऱ्या मिश्र जांण ।। १४ वले उरपर नै मारै विसेख, तिण मैं पिण मिश्र छै त्यारै लेख।
वले अटवी बालंतो जाणै, तिण नैं माऱ्या मिश्र क्यूं न मांणै।
१. अफीम।
४. नाश (क)। २. इशारा।
५. अलग। ३. परकोटे के बाहर सुरक्षा की दृष्टि से बनाई ६. थोर (क)। गई जल से भरी खाई।
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भिक्खु जश रसायण