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दूहा
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१ बूंदी मैं 'बूझा करी", सवाइरामजी
सोय। वखांण संपूर्ण हुआं पछै, आप जहत मांगो अवलोय॥ २ नूंहत घाल सौगन करौ, इसड़ी कहौ छौ आप। ___कांइ आपरैई तोटौ अछै, ते तोटौ बूरण ए थाप? ३ सुता परणाइ सेठ किण, न्यात जीमाई न्हाळ।
तोटौ बूरण –हत लै, ज्यूं सूं तोटो तुम भाळ? ४ स्वाम कहै-इक सेठ तिण, सुता परणाइ सोय।
बोलाया बहु गांम रा, न्यात मित्र अवलोय॥ ५ जीमण कर जीमावीया, सगळां नैं
पकवान। दिवस घणां राख्यां पछै, सीख दीधी सनमांन॥ ६ एक-एक पकवान री, साथ कोथली दीध।
रसतै भूख भाजण, इम सुखे पूगता कीध।। ७ ज्यूं म्हे पिण बहु दिवस लग, वखांण मैं विसतार। वातां विविध वैराग री, संभळाइ
सुखकार॥ ८ हळुकर्मी सुण हरखीया, कर्म कट्या अधिकाय।
छेहडै ए पकवान री, कोथली रूप कहाय॥ ९ त्याग करावा तेहनैं, सुखे मोख मैं जाय। इम टोटौ मेटण अवर नौं, नूंहत मांगा इण न्याय॥
ढाळ : ४१
(धीज करै सीता सती रे लाल) १ स्वाम भीक्खु बुद्धि -सागरू रे लाल, निरमळ मेल्या न्याय रे। सुगुण नर। सुविनीत सुण हरखै सही रे लाल, अविनीत नैं असुहाय रे। सुगुण नर।
सुणजो दृष्टंत स्वामी तणां रे लाल।। २ अविनीत साधु ऊपरै रे लाल, दीधौ स्वाम दृष्टंत। रे सुगुण नर। ___एक साहुकार नी असतरी रे लाल, पांणी काजै गइ धर खंत। रे सुगुण नर। सुण.
१. जानकारी। . २. न्यौता।
३. मिटाने के लिए। ४. ज्ञाति (सम्बन्धी) समूह।
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भिक्खु जश रसायण