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२ स्वामी परभव कै स्वार्थ साचहै, वाचहै सूत्र कला विसतारी।
तेरा ही पंथ साचा त्रिहूं लोक में, नाग सुरेन्द्र नमैं नर नारी। 'सुणीहै " सत्य वात सिद्धत सुज्ञान की, बौहत गुणी करणी वलिहारी। प्रथी के तारक पंचम आर मैं, भीखम स्वामी का मारग भारी॥
(मूल)
२६ सोभाचंद छंद कह्या इसा रे लाल, सांभळ ते गया सरक। सुखकारी रे!
मन माहै मुरझाणा घणां रे लाल, स्वामीजी रा श्रावक होय गया गरक।सुखकारी रे! सुण. २७ पूज खिम्या रा प्रताप सूं रे लाल, पड़ी पाखंड्यां री आब।सुखकारी रे!
ऐसा भीक्खू गुण आगळा रे लाल, सुजस विस्तरीयौ सताव। सुखकारी रे! सुण. २८ ऊंडी पूज आलोचना रे लाल, वारु बुद्धि नां जाब। सुखकारी रे!
धोरी धर्म तणी धुरा रे लाल, दीयौ पाखंड मत दाब।सुखकारी रे! सुण. २९ अवतरीया इण भरत मैं रे लाल, खरै मारग रह्या खेल। सुखकारी रे!
सूतर बुद्धि समसेर सूं रे लाल, पाखंड मत दियौ पेल॥ सुखकारी रे! सुण. ३० समरण तुझ गुण संभरू रे लाल, आवै निश दिन याद। सुखकारी रे!
रोम-रोम सुख रति लहुं रे लाल, पामूं परम समाध।। सुखकारी रे! सुण. ३१ चारू ढाळ चाळीसमी रे लाल, भय भर्म भंजन स्वाम। सुखकारी रे!
'जय-जश'संपति दायका रेलाल, आशा पूरण आंम॥ सुखकारी रे! सुण.
१. सुणियै (क)। २. पृथ्वी (क)। ३. खिसक गए। ४. खुशी में डूब गए।
५. इज्जत। ६. तलवार। ७. हटा दिया।
भिक्खु जश रसायण : ढा. ४०
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