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दूहा
१ विचरत' पूज पधारीया, पादू सैहर मझार।
शीष हेम साथै सखर, संत अवर पिण सार।। २ इक भायौ इह अवसरै, भीक्खू भणी भणेह।
हेम चदर हाथै करी, अधिकी. दीसै एह॥ ३ चतुर स्वाम ते चदर ले, माप दिखायौ मांन।
लांबपणे चौड़ापणे, अधिक नहीं उनमांन॥ ४ पूज कहै-देखौ प्रगट, पछेवड़ी
परमाण। ते कहै-अधिकी तौ नहीं, ए तौ छै उनमांन॥ ५ तूं अधिकी कहितौ तदा, तब तै बोल्यो तांम।
मुझ झूठी संका पड़ी, तब घणौ निषेध्यौ स्वाम।। ६ च्यार अंगल रै वासतै, संजम खोवां सार।
मुझ भौला जाण्या इसा, आंण्यौ भर्म ७ इती२ प्रतीत न तौ भणी, तौ मारग रै माय।
पय काचौ पीवै तदा, तो– खबर न काय॥ ८ इत्यादिक वचने करी, अधिक निषेध्यौ आप।
कर जोड़ी नै ते कहै, कूड़ी संका किलाप। ९ सखरी इण पर शीख दै, खोड मिटावण काम। फिर संका तसं नहि पडै, पवर
परिणांम॥
अपार॥
स्वाम
__ ढाळ : ४० (जाणपणौ जग दोहिलौ रे लाल)
१ स्वाम भीक्खू गुण-सागरूरेलाल, खरा भीक्खू खिम्यावांन सुखकारी रे! संवली वेवै स्वामजी रे लाल, सुणौ सुरत दे कान सुखकारी रे!
सुणजो गुण स्वामी तणा रे लाल॥
१. भि. दृ.७७। २. ऐती (क)।
३. झूठी। ४. सही रूप में लेते हैं।
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भिक्खु जश रसायण