SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 172
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४३ भारीकर्मा सुणी भिडकाय ए, बोलै ऊधमती इम वाय ए। करै ढीली परूपणा काज ए, हिवै दोष तणी कांइ लाज ए।। ४४ इम बोलै मूढ गिवार ए, ज्यां रा घट माहै घोर अंधार ए। पिण इतरी न जाणै साख्यात ए, सर्व कही सूतर नी बात ए। ४५ स्थिर राखण समगत सार ए, अति मेटण भर्म अंधार ए। आगम रहिस बतावै अमाम ए, ते तौ एकंत तारण काम ए॥ ४६ अति मानणौ तसुं उपगार ए, थिर समगत राखणहार ए। रह्यौ गुण मानणौ तौ ज्यांहीज ए, उलटी क्यूं करौ त्यां पर खीज' ए। ४७ परम दुर्लभ समगत पाय ए, रखे संका राखौ मन माय ए। संका राख्या सूं समगत जाय ए, तिण सूं वार वार समजाय ए॥ ४८ पज्जवा नैं हीण पाडै कोय ए, बुकस पड़िसेवणादिक जोय ए। तौ तिण री तिण नैं मुसकल ए, पिण पोतै क्यूं घालौ सलले ए॥ ४९ खोड़ा ऊंट री ऊंट नैं होय ए, ज्यूं पज्जवाहीण तसुं सोच जोय ए। न फिरें छठौ गुणठांण ए, तठा ताई असाध म जांण ए॥ ५० श्रावक कह्या मा तात समान ए, पवर चौथै ठाणै पहिछांण ए। __ हेत सूं कहै रूड़ी रीत ए, पिण अंतरंग मैं अति पीत ए॥ ५१ स्वामी भीक्खू तणे प्रसाद ए, पांमी समगत चरण समाध ए। दियौ हवेली रौ तौ दृष्टांत ए, संक्षेप थकी चित शांत ए। ५२ त्यां रा प्रसाद थी अनुसार ए, साखां न्याय कह्या जय सार ए। सूत्र मैं जिम न्याय वतावीया ए, लेश मात्र अणहुंता न ल्यावीया ए॥ ५३ धिन-धिन भीक्खू स्वाम ए, साऱ्या घणा जणां रा काम ए। त्यांरी आसता राखौ तहतीक' ए, तिण सूं होवै मोख नजीक ए॥ ५४ स्वामी दान-दया दीपाय ए, आज्ञा अणआगन्या ओळखाय ए। ज्यां रा गुण पूरा कह्या न जाय ए, प्रत्यख पारस भीक्खू पाय ए।। ५५ स्वामी याद आवै दिन रैन ए, चित मैं अति पांमै चैन ए। __ ऐसा भीक्खू औजागर आप ए, समरण सूं मिटै सोग-संताप ए॥ ५६ नव तीसमी ढाळ नीहाळ ए, भर्म-भंजण समय संभाळ ए। हवेली रौ हेतु कह्यौ स्वाम ए, सूत्र साख जीत कही तांम ए॥ १. क्रोध। २. शल्य। ३. कुलक्षण/खोट। ४. ठाणं ४ सूत्र ४३०। ५. सही। भिवतु जश रसायण : ढा. ३९ १२५
SR No.006279
Book TitleBhikkhu Jash Rasayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages378
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy