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३० विरह उत्कृष्ट संखेजवास ए,
यां मैं चारित्र गुण श्रीकार ए, ३१ कसायकुशील नेयठा माय ए,
षट् समुद्घात कहिवाय ए, ३२ बहु फोड़वै लब्धि प्रकाश ए, पिण चारित्र गुण श्रीकार ए,
३३ पुलाक बुकस पडिसेवणा पेख ए, यां मैं दोष तणौ डंड जोय ए, ३४ तिण कारण चारित्र चीज ए, जितरौ डंड तितरौ चरण जाय ए, ३५ हींण - वृद्धि पजवां मैं होय ए,
फेर अनंत गुणौ पजवां माय ए, ३६ दशमैधेन' ज्ञाता मैं दयाल ए,
एकम आदि पूनमचंद पेख ए, ३७ ते सम संत समृद्धि ए,
क्षांति आदि ब्रह्मचर्य माय ए, ३८ इम विद पख चंद समांन ए,
किहां एकम किहां पूंनम चंद ए, ३९ चौथै ठांणे चौभंगी उपन्न ए,
दूजौ शीलसंपन्न मदेख ए, ४० तीजौ शीलसंपन्न सुभाव ए,
चौथो शील चारित नहीं तांम ए, ४१ शीतल प्रकृति तौ नहीं कोय ए,
वर न्याय हीयै सुविचार ए, ४२ नसीत वीसमैं न्हाल ए, इम सांभळ छांड़ौ अनीत ए,
१. भगवई शतक २५ अ. ६ सूत्र ३४९ से ३६२ । २. ज्ञाता श्रुत. १ अ. १० सूत्र १ से ५ । ३. ठाणं ४ सूत्र ४१०
४. न (क) ।
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पछै तो अवस्य प्रगटै विमास ए । तिण सूं वंदवा जोग विचार || पांच शरीर छ लेस्या पाय ए । इंण रौ पेटौ भारी है अथाय ए|| मोहकर्म उदय थी विमास ए। तिण सूं वंदवा जोग विचार ए । दिल सूं कषायकुशील वले दोष री थाप न
देख ए । कोय ए ॥
दोष
थाप्यां जावै गुण
छीज ए ||
दोष थाप्यां सर्व विललाय ए॥ प्रगट शतक पचीसमौर जोय ए। तौ पिण चारित्र गुण सुखदाय ए ॥ कह्यौ चंद दृष्टंत कृपाल ए। वलि विद पख चंद विसेख ए ।। जती धर्म दसमैं हीन वृद्धि ए । एकम थी पूनम तांइ गिणाय ए ॥ क्षमादिक गुण मैं फेर जान ए। दसूं धर्म एम वृद्धि मंद ए ॥ शीलसम्पन्न नो चरितसंपन्न ए। चारित सहित कौ विसेख ए ॥ 'विले' चारित्र सम्पन्न साव ए६ । शील शीतल स्वभाव नों नांम ए ॥ दूजै भांगै चारित्र कह्यौ जोय ए । प्रकृति देखी म भिड़कौ लिगार ए ।। वार वार रौ डंड राखौ सूत्र नीं
विसाल ए।
प्रतीत
ए ।
५. विलय ।
६. पिण चारित्र तणो अभाव ए (क)। निशीथ उ. २० ।
७.
भिक्खु जश रसायण