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१७ त्यांरी दिष्ट संजम ऊपर ताम ए, पिण अवगुण सूं नहीं काम ए।
गुण-ग्राहि उत्तम गुणवंत ए, ते तौ संजम-तप जाणे तंत ए॥ १८ संजम गुण जाणे सुद्ध मांन ए, पिण अवगुण सूं नहीं ध्यान ए।
छिद्रपेही भंगी सम छार ए, संजम नै नहीं जाणै लिगार ए॥ १९ छठौ गुणठाणौ इण विध जाय ए, त्यांने ते पिण खबर न काय ए।
छठौ गुणठाणौ इम ठहराय ए, ते पिण जांणपणौ नहीं ताय ए॥ २० अवगुण नै करै अगवांण ए, महानिंदक मातंग मांण ए।
कहै अवगुण आछा नांय ए, तिण नैं कैहणौ इण रौ कहिसी कांय ए। २१ अवगुण तौ कद ही आछा न होय ए, ए तो प्रत्यख ही अवलोय ए।
एतौ निंदवा जोग निषेध ए, इण मैं तें काइ काढ्यौ भेद ए॥ २२ पिण संजम-गुण इण मांय ए, तिण सूं वंदवा जोग कहाय ए। - तूं मूंदै आंणै अवगुण वार-वार ए, थारै कुमति हिया मैं अपार ए॥ २३ दीधौ हवेली रौ दृष्टंत ए, भीक्खू भविक नी भांजण दंत. ए।
स्वामी सूतर न्याय श्रीकार ए, त्यां रा जांण भीक्खू तंत सार ए॥ २४ औ तौ दियौ भीक्खू दृष्टंत ए, त्यां रा हेतु नैं पुष्ट करंत ए।
सूत्र शाख कहै 'जय' सार ए, तिण रौ सांभळज्यो विस्तार ए। २५ कह्यौ सूत्र भगवती माय ए, शतक पचीसरे मैं सुखदाय ए।
उत्तरगुण पडिसेवी पिछांण ए, बुकस नियंठो श्री जिन वांण ए॥ २६ जगन दोय सौ कोड़ ते जांन ए, नहिं विरह कदै नहीं हांन ए।
पंचम पद छठे गुणठांण ए, चारित्र रा गुण लेखै पिछांण ए॥ २७ मूल गुण नैं उत्तर गुण" माय ए, दोष लगावै ते दुखदाय ए।
पडिसेवणा कुशील पिछांण ए, जगन दोय सौ कोड़ ते जांण ए॥ २८ नहीं विरह एह थकी ओछा नाय ए, ए पिण छठे गुणठाणे कहिवाय ए। ____ यां मैं चारित गुण श्रीकार ए, तिण सूं वंदवा जोग विचार ए॥ २९ पुलाग नेयठौ५ पिछांण ए, लब्धि फोड्यां कह्यौ जिन जांण ए।
थिति अंतर्महूर्त्त थाय ए, लब्धि नी थिति तौ अधिकाय ए॥
१. चंडाल। २. भगवई शतक २५ उ.६ सू. ४४७। ३. पंच महाव्रत।
४. दस प्रत्याख्यान। ५. नेयंठो (क)।
भिक्खु जश रसायण : ढा. ३९
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