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________________ ३ सुमति एषणादिक मैं सोय ए, अधिक फेर दीसै अवलोय ए। तीन गुप्त कही तंत सार ए, अतिही दीसै है फरक अपार ए॥ ४ केकारी प्रकृति करड़ी धार ए, छेड़वीयां सूं करै फूंकार ए। मांन माया लोभ मैं मंत ए, किम कहियै तिणां नै संत ए? ५ करडी प्रकृति देख्या साध ए, कोइ बोल्यौ वचन विराध ए। यांमैं साधपणा रौ न अंश ए, अवगुण री करां केम प्रसंस ए॥ ६ वर बोल्या है भीक्खू वाय ए, सुण दृष्टंत एक शोभाय ए। एक साहुकार अवधार ए, कराइ हवेली सुखकार ए। ७ रुपीया हजारां लगावीया ए, जाळी झरोखा अधिक झुखावीया ए। ओपे माळिया-महिल अनेक ए, सुद्ध शोभता सखर संपेख ए॥ ८ चारू रूप विविध चित्रांम ए, अति कोरणीयारे अभिरांम ए। सुखदाई रूप सुविहांण ए, पूतळीयां मन हरणी पिछांण ए॥ ९ आवै लोक अनेक ए, देख-देख नैं हरखै विसेख ए। ___नर-नारी हजारां आवता ए, घणा देख-देख गुण गावता ए॥ १० महिल-माळीया महा श्रीकार ए, तिके जू-जूआ देखै तिवार ए। ___कहै देखौ कोरणीया तांम ए। चतुर रूप रच्या चित्रांम ए॥ ११ साहुकारादिक सहू आय ए, ए तौ सगलाइ रह्या सराय ए। जठै भंगी देखण आयौ जांन ए, धुन सेतखांना सूं ध्यान ए।। १२ महिल-माळिया सांहमी न दिष्ट ए, जाळी झरोखा सूं नहीं इष्ट ए। तिण रै सेतखांना सूं काम ए, तिण सूं तेहज छै परिणाम ए॥ १३ कहै-सेतखांनौ तौ आछौ नहीं ए, सेठ सुणता अवगुण बोलै सही ए। जब सेठ कहै-सुण वाय ए, ताडतखानौ३ किण वासतै ताय ए? १४ सेतखांनी आछौ किम थाय ए, महा नीच वस्तु इण माय ए। निंदनीक वस्तु ए निदांन ए, तू पिण नीच तिण सूं थारो ध्यान ए।। १५ झरोखा जाळ्यां आदि दे जांण ए, प्रगट आछा है अधिक प्रधान ए। स्वाम कहै सुविचार ए, कहूं उपनय ए अवधार ए। १६ संजम तप तौ हवेली समांन ए, सेतखांना ज्यूं अवगुण जांन ए। साहुकारादिक देखणहार ए, ते सम उत्तम जीव उदार ए। १. हवेली के अनुरूप लग रहे हैं। ३. शौचालय २. पत्थर पर की हुई खुदाई। १२२ भिक्खु जश रसायण
SR No.006279
Book TitleBhikkhu Jash Rasayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages378
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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