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________________ दूहा * PTFE आय। १ उपयोग री खांमी ऊपरै, दीयौ स्वाम दृष्टंत'। निरमल-नीकी नीत सूं, सुध जाणौ तसुं संत॥ २ कुंणकौ२ देखी गुर कह्यौ, ए कुणकौ शिष जोय। ऊपर पग दीजौ मती, तहत कीयौ शिष सोय। ३ थोडी वार थी शिष तिकौ, फिरतौ-फिरतौ पग दीधौ तिण ऊपरै, तब गुरु बोल्या ताय।। ४ तुझ म्हैं वरज्यौ थौ तदा, मत दीजौ पग साख्यात। शिष कहै-उपयोग सुद्ध, चूको स्वामीनाथ!।। ५ बीजी वेला शीष वलि, फिरतां-फिरतां फेर। पग दीधौ कण ऊपरै, गुरां निषेध्यौ घेर।। ६ आगै तुझ वरज्यौ हुँतौ, कहै शीष कर जोड़। महाराज! उपयोग मुझ, चूक गयौ इण ठोड़। ७ गुर कहै-अबके चूकीयौ, तो काल विगै३ रा त्याग। फिरतां-फिरतां शीष फिरी, वलि चूको ते जाग। ८ इम वार-वार खांमी पड़ी, ते विगै टाळण थी ताहि। __ वलि कण ऊपर पग देण थी, राजी नहीं मन माहि॥ ९ कर्म-जोग उपयोग मैं, खामी तौ अधिकाय। पिण नीत सुद्ध अरु थाप नंहि, साधपणौ ते न्याय॥ ढाळ : ३९ (किरपण दीन अनाथ ए) EEEEEEEEEEEEEEE १ स्वाम भीक्खू नै सोय ए, किण ही पूछा करी इम जोय ए। . साध साधवीयां रै माय ए, अवगुण दीसै अधिकाय ए॥ २ ज्या नहीं इरज्या रौ ठिकांण ए, भाषा सुमति मैं पिण दीसै हांण ए। केइ करै चालंता बात ए, सुन्य उपयोग री साख्यात ए॥ १. भि. दृ. २१४। २. धान्य कण। ३. दूध, दही आदि छह प्रकार की विगय। भिक्खु जश रसायण : ढा. ३९ १२१
SR No.006279
Book TitleBhikkhu Jash Rasayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages378
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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