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१५ दृष्टंत' भीक्खू दीयौ इसौ, किणहिक पूछ्यौ किवारो रे।
साहुकार कुण सैहर मैं, कुंण है देवाळ्यौ विकारो रे॥ तंत. १६ लेइ पाछौ देवै लोक मैं, साहुकार कहै सोयो रे।
देणौ न देव देवाळीयौ, झगड़ा उलटा मांडै जोयो रे। तंत. १७ ज्यूं संजम लेइ पाळ्यां साध है, दोष थाप्यां नहीं साधो रे।
अथवा डंड न आदरै, वरतां नै देवै विराधो रे॥ तंत. १८ भीक्खू इसा न्याय भाखीया, स्वाम बिना कुंण सोधै रे?
पूज गुणां नों पीजरौ, पूज भविक प्रतिबोधै रे॥ तंत. १९ भीक्खू है दीपक भरत मैं, भीक्खू भळौ भवतारण रे।
साहिब भीक्खू साचलौ, भीक्खू है विघन-विडारण रे।। तंत. २० याद आयां हियौ ऊलसै, अंतरजामी आपो रे।
समरण सूं सुख संपजै, थिर चित्त में करी थापो रे। तंत. २१ स्वाम जिसौ इण भरत मैं, दीनदयाल न दूजौ रे। ___ भविक जीवां! तुम्हे भाव सूं, पवर भीक्खू गुण पूजौरे।। तंत. २२ तन-मन सेती तुझ भणी, हिरदय ओळख हरख्यौ रे।
आसापूरण आप हौ, म्हैं तो प्रतख भीक्खू परख्यो रे। तंत. २३ आखी ढाळ अडतीसमी, समर्यो है भीखू सनूरो रे।
'जय-जश' सुख संपति मिलै, दालिद्र दुख गया दूरो रे॥ तंत.
१.भि. दृ. १००।
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भिक्खु जश रसायण