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१४ तब मेर कहै-जावौ तुम्हे, तिण ब्राह्मणी रै घर तास रे।
जद आया व्यापारी च्यारूं जणां, प्रगट वचन कहै तिण पास रे।। तुम्हे. १५ वाई! रोटियां कर रूड़ी रीत सूं, झट घाल थाका आया जांण रे।
जद इण गोहां री रोट्यां जाडी करी, 'सुरहौ घृत' घाल्यौ सुविहांण रे।। तुम्हे. १६ कीधी दाळ तिण मैं घाली काचऱ्या, जीमवा लागा च्यारुंइ जांण रे।
करडी भूख रोट्यां पिण करकड़ी, वणिक जीमता करै वखांण रे। तुम्हे. १७ रांधणरे देखी फलाणां गांम री, अमकड़िया नगर नी अवलोय रे।
रांधणां देखी बड़-बड़ा सैहर नीं, इसड़ी चतुराई नहिं देखी कोय रे। तुम्हे. १८ कहै-देखौ रै दाल किसी करी, अति चोखी है, स्वाद अत्यंत रे।
माहै काचरिया किसी स्वाद है, घणी करै प्रसंसा जीमंत रे॥ तुम्हे. १९ जद आ बोली-वीरां! वात सांभळी, तीखण' मिली हुँती तौ तांम रे।
खबर पड़ती काचरीयां रा स्वाद री, पिण ते मिली नहीं अभिरांम रे।। तुम्हे. २० जद यां पूछ्यौ-तीखण कहै केहनैं? तब आ कहै-तीखण छुरी तांम रे।
काचरीयां बनारवा' कारणे, छुरी मिली नहीं अभिरांम रो। तुम्हे. २१ तब यां पूछ्यौ छुरी तोनै नां मिली, तौ किण स्यूं वनारी तेह रे?
आ कहै दांतां सूं वनार-वनारनैं, इण दाल माहै न्हाखी एह रे। तुम्हे. २२ तब औ बोल्या-तड़कनै हे पापणी! म्हांनै भिष्ट किया तैं जीमाय रे।
इम कहीने लगा थाळी पटकवा, तब आ बोली उतावळी ताय रे।। तुम्हे. २३ रे वीरां! थाळी भांगजो मती, अमकड़िया डूंमरी आंणी मांग रे।
जद मै बोल्या-हे पापणी! तूं कुंण जाति री? कुंण तुझ सांग? रे। तुम्हे. २४ जद आ बोली--वीरां!बात सांभळी, वणी-वणाई ब्राह्मणी छू ताय रे। ____ असल जाति री तौ गुरुड़ी अडूं, मेरां ब्राह्मणी दीधी वणाय रे। तुम्हे. २५ धुर सूं बात सारी कही मांडनै, सांभळनै च्यारुंइ पछतात रे।
भीक्खू कहै-साथी ब्राह्मणी तणा, सांगधारी सर्व साख्यात रे।। तुम्हे. २६ ऊंन्हौ पांणी धोवण नित्य आचरै, पिण समगत-चारित्र नहीं काय रे।
तिण सूं वणी-वणाई ब्राह्मणी, तिण रा साथी कह्या इण न्याय रे। तुम्हे.
५. काटने के लिए। ६. परिगणित जाति।
१. काली गाय का असली घृत। २. भोजन बनाने वाली। ३. अमुक। ४. छुरी।
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भिक्खु जश रसायण