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________________ ताय। दूहा १ किणहिक भीक्खू नैं कह्यौ- टोळावाळा शीत-उष्ण अति कष्ट सहै, करलौर लोच कराय॥ २ तप 'छठ अठमांदिकर' तपै, सखरी करणी सोय। यूं ही जासी यां तणी, एहना फळ अवलोय?।। ३ स्वामः कहै-इक सेठ रै, पड्यौ देवाळौ पेख। तुरत लाख रुपीया तणौ, विगड़ी वात विसेख॥ ४ पछै एक पइसा तणौ, आंण्यो तेल तिवार। पइसौ तसुं दीधौ परहौ, तौ पइसा रो साहुकार।। ५ रुपीया रा गहुं आंणनै, रुपीयौ पाछौ दीध। तौ साहूकार रुपीया तणौ, प्रत्यख ते प्रसीध॥ ६ इम पइसा रुपीया तणौ, साहुकार अवधार। पिण देवाळौ लाख नौं, तेहनौं नहीं साहकार॥ ५ ज्यूं पंच-महाव्रत पचखनै, आधाकर्मी थाप निरंतर दोष नी, मेट दीधी मर्याद।। ८ औ देवाळी अति घणौ, लोच तपादिक कष्ट। तेहथी किण विध ऊतरै, साधपणा रो भिष्ट।। ९ मासखमणादिक पचखनै, सुद्ध पाळ्यां तसुं साहुकार। पिण महाव्रत भांग्या तेहनौं, साहुकार मत धार ___ ढाळ : ३७ (जीवा! मोह अनुकंपा न आणीयै ) १ किणहिक स्वाम भणी कह्यौ, सांगधार्यां रै साधु रौ सांग रे। ऊही पांणी धोवण ए पिण आचर, मांन मूकी रोटी खावै मांग रे।। तुम्हे सुणजो दिष्टंत स्वामी तणा।। आद। . ३. भि. दृ. २८९। १. कठिन (क)। २. बेले (दो दिन का उपवास), तेले (तीन दिन का उपवास) आदि। ११४ भिक्खु जश रसायण
SR No.006279
Book TitleBhikkhu Jash Rasayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages378
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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