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________________ पथर १३ 'बलवंत बाळे बांध नै रे', तिण नैं कहै सिर नाम। सती माता 'तेजरा'२ तोडजै, ते कांइ तोडै तेजरा तांम? भीक्खू. १४ ज्यूं भेष पहिरै रोटी कारणै रे, तेह. कहौ चोखौ चारित पाळ। ते कठिन चारित पाऊँ किणविधे, दुकर कह्यौ है दीनदयाल। भीक्खू. १५ चोखा-खोटा गुरु ऊपरै, दीयौ नावा नों दृष्टांत। काठ की नाव साजी' कही, एक फूटी नावा छिद्रांत।। भीक्खू. १६ तीजी नाव पथर तणी रे, उपनय हिव अवधार। सुद्ध संत साजी नाव सारिखा, तिकै आप तिरै पर तार।। १७ सांगधारी फूटी नावा सारिखा रे, आप डूबै औरां नैं डबोय। पथर नावा जिसा कह्या पाखंडी, जे तीन सौ तेसठ जोय।। १८ उत्तम तास न आदरै रे, धाऱ्या है तो छोड़णा सुलभ। सांगधारी फूटी नावा सारिखा, त्यां नैं छोडणा घणा दुलभ।। १९ इम भीक्खू ओळखावीया, पाखंडीया मैं पिछांण। स्यूं बुद्धि कहीयै स्वाम नी, वारू किहां लग करूं वखांण।। २० ऊंडी तुझ आलोचना रे, तीर्थ-वछल सासण-नायक स्वाम नैं, करूं वारूं वार सलाम।। २१ तंत ढाळ षट्तीसमी रे, दाख्या स्वाम दृष्टंत। भीक्खू-भजन थी भय मिटै, अरु जय-जश सुख उपजंत।। तांम। __३. भि. दृ. ३०१। ४. अखंड। १. बलवान् व्यक्ति किसी स्त्री को बलात् चिता पर चढ़ाकर जलाता है। २. तीन दिनों के अंतर से आने वाला बुखार। भिक्खु जश रसायण : ढा. ३६ ११३
SR No.006279
Book TitleBhikkhu Jash Rasayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages378
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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