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________________ ढाळ : ३५ (राजा दशरथ दीपतौ रे) १ पूज' भीखनजी पधारीया रे, देस ढूंढार दीपायो रे। ___ अति घणां श्रावगी आवीया रे, चरचा करण चित चाह्यो रे। भारी बुद्धि भीक्खू तणी रे॥ २ स्वाम भणी कहै श्रावगी रे, नग्न-मुद्रा . मुनि नागा रे। ____ तार मात्र वस्त्र न राखणौ रे, राखै ते परिसह थी भागा रे। तंत दृष्टंत भीखू तणा रे।। ३ वस्त्र राखौ शीत टालवा रे, तौ भागा शीत परिसह थी ताह्यो रे। तिण सूं वस्त्र नहीं राखणौ रे, जद पूज बतावै न्यायो रे।। तंत. ४ स्वाम कहै-कितरा सही रे, परिसह भेद प्रकासौ रे? ते कहै-परिसह बावीस छै रे, वलि पूछ पूज विमासो रे। तंत. ५ कहौ प्रथम परिसह किसो रे? ते कहै खुध्या रौ ताह्यो रे। पूज कहै-थांरा मुनि रे, आहार करै कै नाह्यौ रे? तंत. ६ श्रावगी कहै-करै सही रै, इक टक आहार ते जागा रे। पूज कहै-तुझ लेखै मुनि रे, प्रथम परिसह थी भागा रे॥ तंत. ७ ते कहै-खुध्यां लागां छतां रे, आहार करै अणगारो रे। स्वाम कहै-सी लागां सही रे, वस्त्र म्हे राखां विचारो रे॥ तंत. ८ पूज वली पूछा करी रे, प्रगट तुझ मुनि पहिछांणी रे। पांणी पीवै कै पीवै नहीं रे, उत्तर आपौ सुजांणी रे? तंत. ९ श्रावगी कहै-पीवै सही रे, इक टक उदक ते जागां रे। स्वाम कहै-तुझ लेखै तिकै रे, दूजा परिसह थी भागा रे॥ तंत. १० ते कहै-त्रिस लागा छतां रे, उदक पीयै अणगारो रे। स्वाम कहै-सी टालिवा रे, वस्त्र ओढां म्हे विचारो रे॥ तंज. ११ भूख लागा अन्न भोगवै रे, प्यास लागा पीयै पांणी रे। इम निर्दोषण आचर्यो रे, न भागै परिसह थी नांणी । तंत. १.भि. दृ. ३०। २. एक बार। एक टक (क) भिक्खु जश रसायण : ढा. ३५ - १०९
SR No.006279
Book TitleBhikkhu Jash Rasayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages378
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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