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दूहा
काळवादी करलौ घणौ, नहि समकत सुद्ध नीव'।
सिद्धा मैं पावै नहीं, आखै तास अजीव।। २ वखतरांमजी नाम तसुं, पुर माहै पहिछांण।
कुकळा कुबुद्धिज केलवी, विहार करी गया जांण।। ३ इतलै भीक्खू आवीया, चरचा करत पिछांण।
मेघ भाट मुनि नैं कहै, वगताजी री वांण।। काळवादी इसड़ी कहै, 'अति घन वात अतीव।' भीखनजी गाथा मझै, कहै एकलड़ौरे जीव।।
भिक्षू कृत गाथा
एकलड़ौ जीव खासी गोता, जद आडा नहीं आवै बेटा-पोता। नरक माहै खातां मारी, पायौ मनुप जमारौ मत हारौ।।१।।
दूहा ५ इण 'विध भीखनजी कहै, गाथा मैं इक जीव। वलि नव-तत मैं पांच कहै, विरुई बात
- अतीव॥ ६ जो पांच जीव नव तत्त्व मैं, तौ कहिणो पांचलड़ौ जीव।
एकलड़ौ ते किम कहै! इम पूछा तिण कीव। ७ पूज कहै-तसुं पूछणौ, सिद्धां मैं सुखकार।
कहौ आतमा केतली? तब काळवादी कहै च्यार। ८ फिर त्यांनै इम पूछणौ- ते च्यारूं जीव कै न्याय? __ जब कहैं च्यारूं जीव है, च्यार जीव तसुं न्याय॥ ९ चौलड़ौ जीव त्यां ही कह्यौ, मुझ लड़ अधिकी एक।
सांभळ. ते समजीयौ, मेघौ भाट विसेख॥
३. भि. दृ. ५०।
१. नींव (क)। २. अत्युक्ति।
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भिक्खु जश रसायण