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१५ क्यारै क्यारै क्यूं ही नहीं रहै कांई, औसा भीक्खू ऋष आप ओजागर,
१६ उत्पत्तिया बुद्धि अधिक अमांमी, जिण आगन्या माहै धर्म जतायौ, १७ संखला' न्याय मेल्या सूत्र देख, याद आयां तन मन उलसाय, १८ स्यूं ओपमा तुझनैं कहूं सार, उवाइ' में ओपम एह अनूंप,
१९ आदिनाथ ज्यूं काढी धर्म आदि, वारू सरण आप रौ सुविसाल, २० सांम भीक्खू गुण गावत समरीयौ, चौतीसमीं ढाळे भीक्खू चित चाह्या, वारू
१. सखरा / स्पष्ट ।
२. सिद्ध पुरुषों द्वारा वरदान के रूप में दी जाने वाली रसभरी कूंपी। जिसके रस के स्पर्श से लोहा सोना हो जाता है।
भिक्खु जश रसायण : ढा. ३४
देश- सर्व दृष्टं सरणागत महाबुद्धि धुर जिन आज्ञा परमति आज्ञा बारै असुभ सहु वाह वाह भीक्खू बुद्धि
रस
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-कूंपिका तूं 'अजिणा जिण- सरिसा सखर थिवरा नैं दीधी सखरी उपजाई आप म्हारै तूं हीज म्हारौ हिवड़ौ हरख परमानंद
देखाई |
सागर।
धांमी ।
आयौ ।
विसेख ।
ऋषराय ।
३. ओवाइयं. सूत्र २६ ।
उदार ।
सद्रूप ।
समाधि ।
दीन दयाल |
सूं भरीयो ।
वरताया।
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