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३. असल न्याय भिन्न-भिन्न ओळखाया, प्रभु-पंथ भीक्खू हद पाया।
भेषधारी सरधा हीण भयाला, दीयौ दृष्टंत पूज दयाला। ४ समक्तहींण जे अधिक असार, यांसै असल नहीं आचार।
थोथा चणां री भखारी थी एक, साबतो३ चणौं मूल म पेख। ५ ऊंदरा रड़बड़ कीधी आखी रात, एक कण पिण नायौ हाथ।
सांगधा- माहै समकत नांय, प. उंदर सम नर पाय। ६ कहौ साध श्रावक त्यांनै केम कहाय, जै तौ दोनूं सरीखा देखाय।
समकत रहित दो→ई न तंत, दीयौ स्वाम भीक्खू दृष्टंत। ७ कोयलां री तो राब अति काळी, काळा बासण मैं रांधी कराली।
अमावस नीं रात्रिआंधा जीमण वाळा, परुसण वाळाई आंधा पयाला। ८ जीमता बोलै खूखारा करंता, काळौ कूखौ' टाळजो मतिवंता।
कहै-खबरदार होय जीमजो सोय, रखै आय जायला काळौ कोय। ९ मूढ इतरौ नहीं जांणै समेळौ, काळौहीज काळौ हुओ भेळौ। ___ज्यूं सरधा-आचाररौ नहीं ठिकांण, सगळौ मिलियौ सरीखौ घांण। १० साध-श्रावकपणां रौ अंस नहीं सारो, संवर लेखै दोयां रै अंधारो। __न्याय री बात नहीं सुद्ध नीत, वले बोलै वचन विपरीत। ११ वस्त्र-पात्र अधिका राखै विसेख, आधाकादिर्प दोष अनेक।
वले कहै-भीखनजी! काढौ इण रौ तार', सुद्ध स्वाम बोल्या सुखकार। १२ तब पूज कहै-काटै तार कांई, थांदें डांडा ही सूझै नाहीं।
सबल आधाकर्मी आदि न सूझै, कहौ नान्हा दोष किम बूझै? १३ दोष री थाप थारै दिन रेणो, कठण काम सरधा रौ तौ कैहणौ। ___ 'वायरै वंग' घरटी मांडी बाई, पीसती जावै ज्यूं उड्यौ जाई। १४ आखी रात्रि पीसी ढाकणी मैं उसार्यों", एहवौ दृष्टंत भीक्खू उतार्यो।
ज्यूं दोष लगायनै डंड न लेवै, कुमति दोष री थाप करेवै।
१. भि. दृ. १७३। २.अनाज ईंधन आदि रखने का अंधेरा कोठा
या एक प्रकार की छोटी कोठरी। ३. पूरा। ४. बर्तन। ५. तिनका।
६. साधु के लिए बनाया हुआ आहार
आदि। ७. रहस्य। भि. दृ. १७४। ८. हवा के सामने। ९. मिट्टी से बना हुआ ढंकने का बर्तन। १०. समेटा
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भिक्खु जश रसायण