SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 152
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दूहा सार। जायवा १ पचाव.' वर्स पूज जी, सैहर कांकरोली - सैहलोतां री पौळ मैं, ऊतरीया तिण वार॥ २ प्रत्यख बारी पौळ री, जड़ी हुंती जिणवार। ऋष भीक्खू रहितां थकां, एक दिवस अवधार॥ ३ बारी खोली वारणे, दिशा देख। नीसरीया भीक्खू निशा, पूछ्यौ हेम संपेख॥ ४ स्वामी बारी खोलण तणौ, नहीं कांइ अटकाव? ___तब भीक्खू बोल्या तुरत, प्रतख ते प्रस्ताव।। ५ पाली सैहर तणौ प्रत्यख, नाम चौथजी न्हाळ। दर्शण करवा आवीयौ, ए देखै इण काळ।। ६ अति संकीलौ ए अछै, पिण इण बात री तांम। संका इण रै नां पड़ी, केम पड़ी तुझ आंम? ७ हेम कहै-माहरै हियै, कांइ संका रौ काम? पूछण रूप म्ह पूछीयौ, नहि संका रौ नांम।। ८ पूज कहै-पूछ इसी, इण रौ नहीं अटकाव। अटकाव हुवै जो एहनों, म्है खोलां किण न्याव।। ९ हेम सुणी जाण्यौ हियै, किवाड़ीयों खोलाय। आहार लीयां मैं दोष नहीं, खोल्यां दोष किम थाय॥ ढाळ : ३४ (सुण जो नर नाथ!) १ स्वाम भीक्खू रा दृष्टंत सुहाया, भव्य उत्तम जीवां मन भाया। सुणजो चित्त शांत, भीक्खू ना भारी दृष्टंत।। २ वचन-सुधा वागरै स्वामी वारू, सुद्ध भवि-जन तारण सारू । सुखदाया, स्वामी ना दृष्टंत सुहाया।। सुणजो १. भि. दृ. १७२। भिक्खु जश रसायण : ढा. ३४ १०५
SR No.006279
Book TitleBhikkhu Jash Rasayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages378
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy