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दूहा
१ किणहिक' भीक्खू नैं कह्यौ- जीव वच्या जे जाण।
दया कहीजै तेहनैं, जीवण दया पिछांण॥ २ भीक्खू कहै-कीड़ी भणी, कीड़ी जाणै कोय।
ग्यांन कहीजै तेहनैं, के कीड़ी ग्यांनज होय? ३ तब ते कहै-कीड़ी भणी, जे कोइ कीड़ी जांन।
ग्यांन कहीजै तेहनैं, पिण कीड़ी नहीं ग्यांन॥ ४ वलि भीक्खू कहै-कीड़ी भणी, कीड़ी सरधै कोय।
समकत कहिजै तेहनैं, के कीड़ी समगत होय? ५ तब ते कहै-कीड़ी भणी, कीड़ी सरधै तत।
समगत ते सरधा सही, पिण कीड़ी नहीं समकत।। ६ त्याग कीड़ी हणवा तणा, दया तेह . दीपाय?
के कीड़ी रही तिका दया, भीक्खू पूछी वाय॥ ७ तब ते कहै-कीड़ी रही, तिका दया कहिवाय।
खोटी सरधा थापवा, बोल्यौ झूठ बणाय॥ ८ भीक्खू कहै-पवने करी, कीड़ी उड गइ ताय।
तुझ लेखै दया उड़ गइ, निरमळ निरखौ न्याय॥ ९ जद ऊ कहै विचारनै, कीड़ी हणवा रा त्याग कीयाह। दया तेहज दीसै खरी, पिण कीड़ी रही न दयाह।।
ढाळ : ३३
(कर्म भुगत्यां इज छूटीयै) १ वलता भीक्खू बोलीया, कीड़ी मारण रा पचखाण लाल रे। __तेहिज दया साची कही, वारु सुणौ इक बांण लाल रे।
जोयजो रे बुद्धि भीक्खू तणी ॥ २ रूड़ी दया निज घट मैं रही, के कीड़ी पास कहाय? लाल रे।
तब ते कहै-पोता कनैं, कीड़ी पास न काय लाल रे।। जोयजो.
१. भि. दृ. १४९।
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भिक्खु जश रसायण