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४२ केइ अग्यांनी कहै भूला भर्मो, जीव-धन रह्यौ तिण रौ है धर्मो रे।
उण री सरधा रै लेखै इम थापो, प्रत्यख नार मूआं रौ है पापो रे।।समजू. ४३ नार मूंआं रौ पाप दिल नांणै, जीव वचीया रो धर्म कांय जांणै रे।
वले धन रह्या रौ धर्म कांय धारो, बुद्धिवंत न्याय विचारो रे।। समजू. ४४ भीक्खू स्वाम इम भेद बताया, असल न्याय ओळखाया रे। ___ कसाइ तसकर लंपट केरौ, भीक्खू दृष्टंत दियौ भलेरो रे।। समजू. ४५ ऐसा भीक्खू ऋष महा अवतारी, त्यां सरधा सोधी तंत सारी रे।
ज्यां पुरसां री जे प्रतीत करसी, त्यांरो जीतव-जन्म सुधरसी रे।।समजू. ४६ ऐसा भीक्खू याद आवै मोय, हरख हीयै अति होय रे।
समरण आप तणौ नित्य साधूं, भीक्खू पारस साचौ म्ह लावू रे।। समजू. ४७ सुरगिर सांप्रत आप सधीरा, मोंनै मिलिया अमोलक हीरा रे।
पंचम आरा मैं कीयौ प्रकास, सखरी फैली है वास सुवास रे।। समजू. ४८ दोय तीसमी ढाळे दृष्टं तो, वर्णन बहु विरतंतो रे।
स्वाम भीक्खू ओळखायौ विशेष, तिण सूं म्हैं पिण आख्यौ असेस रे।समजू.
भिक्खु जश रसायण : ढा. ३२