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________________ २९ इम कहै मेसरी वयण अथागो, ऋषजी तणौ तौ न रागो रे। धन राखण उपदेश म धार, ते तौ तसकर तारणहार रे। समजू. ३० कसाइ समज्यां वकरा कुसले कह्याजी, तसकर समज्यां धन रौ धणी राजी रे। कसाइ-चोर तारण ऋष कामी, धन-बकरा राखण नहीं धांमी रे।। समजू. ३१ तीजो दृष्टं त कहूं तंत सार, एक पुरुष लम्पट अधिकार रे। सो पुरुष पर-नारी नौं सेवणहार, अति ही बंधांणी पीत अपार रे।। समजू. ३२ ते लंपट आयौ मुनि तणें पाय, साधां दियौ समजाय रे। पर-स्त्री नौं पाप सुणी भय पायौ, अधिक वैरागज आयो रे।। समजू. ३३ ते त्याग जावजीव कीधा ते ठाम, गावै मुनि नां गुणग्रांम रे। आप मोनैं डूबता नैं उबार्यो, 'निकुच विसन' थी निवारयौ रे।। समजू. ३४ सील आदरीयौ सुण्यौ तिण नार, ऊपनौ द्वेष अपार रे। उण नैं कहै-म्हैं धार्यो इकतार, धुर' ही थी थां पर धार रे॥ समजू. ३५ काम औरां सूं नहीं मुझ कोय, इसड़ी धारी अवलोय रे। कैहतौ म्हारौ कह्यौ मांन लै तास, म्हांसू करै ग्रहवास रे।। समजू. ३६ कह्यौ न मान्यौ तौ कुऔ पड़तूं, मोत कुमोते मरतूं रे। __जब ते कहै मो. मिलीया जिहाज, परतख भवदधि पाज रे॥ समजू. ३७ त्यां पर-नारी नों पाप बतायौ, म्हैं त्याग किया मन ल्यायो रे। तिण सूं म्हारै थां तूं मूळ न तार, करै अनेक प्रकार रे॥ समजू. ३८ इम सुण अस्त्री कुऔ पड़ी आय, तिण रौ पाप साधु नैं न थाय रे। समज्यौ कसाइ बकरा वच्या सोय, तसकर समज्यां रह्यौ धन जोय रे। समजू. ३९ नर लंपट समज्यां कूऔ पड़ी नारो, चतुर हीया मैं विचारो रे। तसकर कसाइ लंपट नै तारण, साधां उपदेश दीयौ सुधारण रे॥समजू. ४० ए तीनूं तिऱ्या साधु तारणहार, यां रौ धर्म साधां नैं उदार रे। मुक्ति-मारग यां तीनां रै वधाया, घणां जामणरे मरण मिटाया रे।। समजू. ४१ बकरा वच्या धणी रे धन रहीयौ, तिण रौ धर्म साधु रै न कहीयौ रे। नार कूऔ पड़ी तिण रौ न पापो, अदल विचारो आपो रे॥ समजू. १. निकृष्ट व्यसन। . २. पहले। ३. जन्म। ४. निष्पक्षा १०० भिक्खु जश रसायण
SR No.006279
Book TitleBhikkhu Jash Rasayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages378
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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