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________________ ३ कर्म रूप ऋण माथै कुंण करतो, आगला कर्म कुंण. अपहरतौ रे। कर्म ऋण रजपूत माथै करै छै, बकरा संचित कर्म भोगवै छै रे। समजू. ४ साधु रजपूत नैं वरजै सुहाय, कर्म करज करै काय रे। कर्म बांध्यां घणां गोता खासी, परभव मैं दुख पासी रे॥ समजू. ५ सखरपणे तिण नैं समजायौ, तिणरौ तिरणौ वंछ्यौ मुनिरायो रे। बकरा जीवावण नहिं दै उपदेश, रूड़ी ओळखै बुद्धिवंत रेस रे।।समजू. ६ इमहिजरेकसाइ सौ बकरा हणतो, सुद्ध उपदेश दे तार्यो संतो रे। कसाइ गुणग्रांम साधु रा करंतो, मुझ तारक आप महतो रे। समजू. ७ बकरा हरख्या जीवां वंचीया विशेष, यारै काज न दियौ उपदेश रे। ___ 'ग्यांनादि चिउकसाइघट आया, पिण बकरा तौ मूळ न पाया रे।। समजू. ८ कहै कसाइ दोनूं कर जोड़, सौ बकरा करै सोर रे। कहौ तौ नीलौ चारौ यांनै चराऊं, पछै 'काचौ पांणी' त्यांनै पांऊ रे। समजू. ९ आप कहौ तौ एवर' मैं उछेरूं, कहौ तौ अमरियाई करेरूं रे। आप कहौ तौ सूंपूं आपनैं आंणी, पाइजो धोवण ऊंन्हौ पांणी रे। समजू. १० तुम सूको चारौ नीरजो बहुतेरौ, एवर साधां रौ उछेरौ रे। साधु कहै सूंस सखरा पाळीजे, जाबता सूंसा री कीजै रे॥ समजू. ११ सूंसा री एम भळावण देवै, बकरां नी मूळ न वेवै रे। उपदेश देवै जो बकरा वचावण, तौ बकरां री देत भळावण रे।। समजू. १२ समज्यौ कसाइ सखर सिव साई, इण री मुनि नैं दलाली आई रे। जेहिज धर्म साधु नैं जोय, पिण बकरां रौ धर्म न कोय रे।। समजू. १३ कसाइ अग्यांनी रौ ग्यानी कहायौ, पिण बकरां तौ ग्यांन न पायो रे। कसाइ मिथ्याती रौ समकती कहियै, सुद्ध तत्व बकरा न सदहियै रे।। समजू. १४ हिंसक रौ दयावांन हुऔ कसाइ, दिल बकरां रै दया न आई रे। तिरियौ कसाइबकरा नहीं तिरिया, दुर्गति सूं नहीं डरीया रे॥ समजू. १५ कसाइ तिर्यो ते धर्म इण काज, तारक महामुनिराज रे। तिरण-तारण कसाइ रा तपासो, वारू हीया मैं विमासौ रे॥ समजू. १. अच्छी २. भि. दृ. १४०। ३. ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप। ४. अप्रासुक जल। ५. भेड़ या बकरियों का झुंड। ६. अबध्य। ७. त्याग। भिक्खु जश रसायण
SR No.006279
Book TitleBhikkhu Jash Rasayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages378
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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