________________
जांण।
१ किणहि' भीक्खू नै कह्यौ- जीव छोड़ावै __ स्यूं फल तेहनौं संपजै? वर भीक्खू कहै वांण। २ घट मैं ग्यांन घाली करी, हिंस्या छोडायां धर्म।
जीवण वांछै जेहनौं, कटै नहिं तसुं कर्म। ३ ऊंची कर बे आंगुली, आखै भीक्खू आप।
औ बकरौ, राजपूत औ, कहौ बांधै कुंण पाप? ४ मरणहार बूडै महा, कै बू - मारणहार?
ऊ कहै-मारणहार सो, जासी नरक मझार॥ ५ भीक्खू कहै-डूबता भणी, तारै संत तिवार।
समजावै राजपूत नैं, सिव मारग श्रीकार। ६ जे बकरा रौ जीवणौ, वांछै नहीं लिगार। तिण ऊपर दृष्टंत ते, सांभळजो
सुखकार॥ ७ साहूकार रै दोय · सुत, इक कपूत अवधार।
ऋण करड़ी जागा तणौ, माथै करै। अपार॥ ८ दूजौ सुत जग-दीपतौ, जश संसार मझार।
करड़ी जागा रौ करज, उत्तारै तिण वार॥ ९ कहौ किण नैं वरजै पिता, दोय पुत्र मैं देख। वरजै करज करै तसुं, कै ऋण मेटत पेख?
ढाळ : ३२
(समता रस विरला) १ करज माथै सुत अधिक करंतो, वार वार पिता वरजंतो रे।
समजूने नर विरला ॥ करडी जागा रा माथै काय कीजै, प्रतख दुख पांमीजै रे॥ समजू. २ अधिक माथा रौ जे करज उतारै, जनक तास नहि बारै रे। स.
पिता समान साधू पहिछांणौ, बकरौ राजपूत बे-सुत मांणौ रे।। स. १. भि. दृ. १२८।
२. अंश मात्र। ३. तत्त्व को पहचानने वाले।
भिक्खु जश रसायण : ढा. ३२