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________________ १५ ऐसी बुद्धि उत्पात री, नहीं मान वडाई री नीत ललना । आत्म-: ओपता, -अर्थी पूरी ज्यां री प्रतीत ललना ॥ तंत्. दोष जांणी कीया दूर ललना । निरमळौ सम आदरीयौ सूर ललना ॥ तंत. १६ आप ववहार मैं निरदोष जांण्यौ ओळखी, १७ प्रथम आचारंग पेखलो, पंचम अधेन पिछांण ललना । पंचम उदेशै परवडौर, वीर तणी ए वांण ललना ।। तंत. १८ सुद्ध ववहार आलोचीयां, असम्य पिण सम्य थाय ललना । ते कांमी नहीं तिण दोष नौं, सुद्ध साधु नीं रीत सुहाय ललना॥ तंत. १९ उत्तम ए पाठ ओळखी, कोइ बोल रौ भर्म-कर्म जोग ललना । तौ भीक्खू री आसता राखीयां, पांमै सुख पर-लोग ललना।। तंत. २० आखी ढाळ इकतीसमीं, भीक्खू बुद्धि भंडार ललना। दृष्टंत दिल मैं देखतां चित्त पांमैं चिमत्कार ॥ तंत. १. आयारो. अ. ५ उ. ५ सूत्र ९६। २. अच्छा। ९६ " " ३. असम्यग्। भिक्खु जश रसायण
SR No.006279
Book TitleBhikkhu Jash Rasayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages378
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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