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दूहा
जाय।
१ विहरत' पूज पधारीया, 'काफरले' किण वार।
संत गौचरी संचऱ्या, आज्ञा लेइ उदार।। २ एक जाटणी रै उदक, जाच्यौ साधां
ते धोवण नहीं दै तिका, कहै-देवै सौ पाय।। ३ साधां आय कह्यौ सही, स्वाम पास सुविहांण।
एक जाटणी रै अधिक, पिण नहीं देवै पांण।। ४ तब स्वामी आया तिहां, बाइ जळ वहिराय।
जब ते कहै-देवै जिसौ, परभव मैं फळ पाय॥ ५ औ धोवण यूं आपनै, परभव धोवण पाय। जे जळ पीधौ जाय नहि, मुझ सेती
मुनिराय॥ ६ पूज तास पूछा. करी- गाय भणी दै घास।
तिण रौ स्यूं दै ते गउ, आपै दूध उजास।। ७ इम मुनि नैं जळ आपीयां, परभव सुख फळ पाय।
निरदोषण नां फळ निमळ, स्वाम दई समजाय।। ८ जद आज्ञा दी जाटणी, वहिरी ते सुद्ध वार।
आप ठिकाणे आवीया, ऐसी बुद्धि ९ मति ग्यांन महा निरमळी, भीखू नौं भरपूर। नीत चरण पाळण निपुण, स्वाम सिंघ सम सूर।
ढाळ : ३०
(भगवंत भाख्या रे श्रावक एहवा) १ आज म्हारा पुज सूं रे पाखंड थरहडै, सुर गिर आप सधीरो जी।
पारस साचौ रे भीक्खू परगट्यौ, हद स्वाम अमोलक हीरो जी। आज. २ पादूर सैहरे रे पूज पधारीया, उतऱ्या उपासरै आंणो जी।
शिष हेम संघातै रे गौचरी ऊठतां, इतलै कुंण अवसांनो जी। आज.
उदार।।
१. भि. दृ. ३४। २. भि. दृ. १०।
३. वृतान्त।
भिक्खु जश रसायण : ढा. ३०