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१५ भरत-खेतर मैं दीपक भीक्खू, द्वीपा समान दीपायौ।
जिहाज तुल्य भीक्खू जशधारी, प्रत्यख ही पेखायौ रा॥ भविक. १६ याद आवै भीक्खू मुझ अह-निश, तन-मन शरण तुम्हारौ।
त्यां पुरसां री आसता तीखी, जिण रौ है सफल जमारौ रा। भविक. १७ गुणतीसमी ढाळे ग्यांनी गुर ना, वारू वचन बताया।
कठा तिलक भीक्खूगुण कहिये, चिर जश-कलश चढाया रा।। भविक.
१. कहां तक।
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भिक्खु जश रसायण