SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 136
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३ मूंऔ देख हाहाकार माच्यौ, प्रत्यख हाय-हाय शब्द पुकारै, ४ कहै बापरी' छोहरी रौ घाट कांइ हुसी बारै वरस री विधवा हुइ सो, ५ एम विलाप करै लोक अधिका, कुरणा दया इण छोहरी नीं करै छै, पिण भोळा इतरी नहि पेखै, जाऊ रह्यौ तौ जीवतौ तौ, ७ दो-च्यार हुंता डावरा - डावरी, ६ पिण न जांणै आ काम भोगां थी, ८ तिण री चिंता तौ नहीं तिणां नैं, ते पिण मूळ चिंता नहीं त्यांनै, ९ ग्यांनी पुरुष मरण - जीवण सम गिरौं, मूढ मिथ्याती मोह राग नैं, १० अथवा राग-द्वेष रै ऊपर, Start किण ही माथा मैं दीधी, ११ उण नैं सहु कोई देवै ओलूंभा, क्रोध करी दीयां द्वेष कहै सहु, १२ डावरा नैं किण ही लाडू दीधौ, कोइ न कहै इणनैं कांय डबोवै, १३ औ राग ओळखणौ दोहरौ अति ही, दुर्जय रागं दसम तांई देखो, १४ इम राग-द्वेष भीक्खू ओळखाया, स्वाम भीक्खू न्याय- सूतर सोधी, १. भौंचक्का (विस्मित) २. बेचारी / असहाय । ३. हाल / दशा । ४. खराब । भिक्खु जश रसायण : ढा. २९ त्रिया रोवै तिण वेळा । भयचक्र' जन हुआ भेळा रा॥ भविक. री देखौ अवस्था ऐसी । किण विध दिन काढेसी रा? भविक. जगत इण नैं दया जांणै। इण रा॥ भविक. काम भोगो। मूंहर्ख तो इम मां औ वंछै इण रा सखर मिल्यौ थौ संजोग रा॥ भविक. भोग भला भोगवती । दूजौ माठी गति माहि पड़ती रा।। भविक. तथा पिऊ 'किण गति पांगरीयौ ॥ जगत माया मोह जुड़ीयौ रा। भविक. 'उलट सोग' नहिं आंणै। जीवणां नैं दया जानैं रा ।। भविक. दृष्टंत दीधौ । सांप्रत द्वेष प्रसीधौ रा ।। भविक. डावरा रै माथा मैं कांय देवै? कोइ आछौ नहीं कैहवै रा ।। भविक. अथवा मूंळौ दीयौ आणी । प्रत्यख राग पिछाणी रा ।। भविक. इणनैं दया कहै छै अजांणो । वीतां वीतराग कहांणो रा ।। भविक. मोह-राग पाखंडी दया मांगें। निरवद दया आज्ञा मैं जांणै रा ।। भविक. ५. कौन सी गति में उत्पन्न हुआ। ६. हर्प। ७. भि. दृ. ६ । ८. दसवें गुणस्थान तक। ८९
SR No.006279
Book TitleBhikkhu Jash Rasayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages378
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy