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१ किणहिक' भीक्खू नैं कह्यौ, सूंस'
करावौ
सोय। ते लेई भागै तिको, पाप आपनैं होय॥ २ स्वामी भाखै सांभळो, कोयक
साहूकार। वस्त्र किण नैं वेचीयौ, सौ रुपियां रो सार॥ ३ नफौ मोकळौ नीपनों, वेच्यौ तास विचार। वलि वसतर लेवाल रा, सांभळजो
समाचार॥ ४ कपड़ौ लीधौ तिण कीया, एक-एक रा दोय।
तौ पिण नफौ उण तणौं, वेच्यौ तास न होय॥ ५ कपड़ो जो लेई करी, जालै अग्नि मझार।
तोटौ पिण उण रै तिकौ, वेच्यौ तसुं म विचार।। ६ समजाई म्हे सूंसरे दारे, तिण रौ नफौ अमांम।
हमनै तौ ते हुय गयौ, तोटा मैं नहिं तांम॥ ७ संस पाळसी अति सखर, थिर फळ तेहनै थाप।
भांग्यां दोषण उण भणी, पिण म्हांनै नहीं पाप।। ८ वलि दूजौ दृष्टंत वर, दमि नैं किण घृत दीध।
मुनि नैहराइ' 'जिय मुंआं", पापज तास प्रसीध॥ ९ अथवा मुनि अन्य साध नैं, घृत दे बंधा जिन-गोत। तौ पिण फळ ते मुनि तण, हिव गृही नैं नहिं होत॥
ढाळ : २८
(सीता विभीषण नैं कहै निशंक स्यूं) १ वैरागी री वांणी सुण्यां वैराग वाधै, दीयौ स्वाम भीक्खू दृष्टंतो रे लोय। कसूंबो आप गळ्यां गाकै कपडौ, आवै रंग अत्यंतो रे लोय॥
स्वाम भीक्खू तणा दृष्टंत सुणजो ॥
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१.भि. दू.१३६। २. प्रतिज्ञा। ३. धां (क)।
४. श्रेष्ठ। •-५.भि. दृ. १३७।
६.संयमी। . ७. असावधानी से। ८. जीव मरने से। ९. बंधे (क)। १०.भि. दृ. २२४।
भिक्खु जश रसायण : ढा. २८