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________________ १२ पिण गोहां री दाल हुवै नहीं प्रत्यख, ज्यूं भारीकर्मा न समजै जांणी। ____ हळुकर्मी बुद्धिवान हुवै ते, पक्ष छांडै जिणधर्म पिछांणी॥ हो म्हारा. १३ सुध जाब दूजौ देवै तिण मैं नसमजै, आपरी भाषा रो ई अजांण। दृष्टंत' स्वाम ते ऊपर दीधौ, समजावण काज सयांण॥ हो म्हारा. १४ एक बाई बोली-म्हारो भर्तार एहवौ, आखर लिखै ते अधिक अजोग। बीजा सूं आखर वचै नहीं विरुआ', मोनै ठोंठ रौ मिलियौ संजोग॥ हो म्हारा. १५ इतरै दूजी कहै-मुझ पिउ इसडौ, 'पोता रा' लिख्या अखर पिछांणो। जे पिण पोता सूं वच्या नहीं जावै, अति हि मूरख एहवौ अजांणो॥हो म्हारा. १६ ज्यूं आपरी भाषा नैं आप न जाणै, केवळि भाख्यौ धर्म किम आवै? सरधा तौ परम दुलभ कही सूत्रे', परवीण हळुकर्मी पावै। हो म्हारा. १७ पाखंड्यां रौ मग गायां री पगडांडी, दूर थोडी तौ मारग दीसै। ___ 'आगै उजाड " मोटी अटवी मैं, दुष्ट कांटा विषम दुधरीसै॥ हो म्हारा. १८ ज्यूं दान सीलादिक अल्प दिखाई, पाखंडी पछै हिंस्या पमावै। ___आगे चलै. नहीं ए उनमारग, जाब माहै घणां अटक जावै। हो म्हारा. १९ पातसाही-रस्ता जिम पंथ प्रभु नौं, नहीं अटकै कठेइ ते न्यायो। दृष्टंत पाग तणौ स्वाम दीधौ, पार थेट तांइ पौहचायौ। हो म्हारा. २० पाग चोरी ल्यायां पूछ्यां न पूगै, मुदौ थेट ताइ न मिलाई। साचौ कहै-मोल ली उण सेती, रूड़ी अमकडीयार पास रंगाई।हो म्हारा. २१ इम साची सरधा-किहांईन अटकै, झूठी सरधा अटक झोला खावै। दृष्टंत स्वाम भीक्खू एहवा दीधा दांन दया आज्ञा दरसावै।। हो म्हारा. २२ एहवा भीक्खू स्वाम आप ओजागर, ज्यां रा गुण पूरा कह्या न जावै। ___ हद न्याय सुणी हरखै हलुकर्मी, भारीकर्मा सांभळ भिड़कावै॥हो म्हारा. २३ सखर ३ ढाळ कही सप्त वीसमी, दृष्टंत भीक्खू रा दिखाया। मति-श्रुत सूं वर न्याय मिलाई, स्वामी जीव घणा समजाया।हो म्हारा. १. भि. दृ. २६२। २. विद्रूप। ३. अनपढ़। ४. स्वयं का। ५. उत्तरण्झयणाणि-अ. ३ गा. १। ६. भि. दृ. १३४। ७. निर्जन बस्ती। ८. दुर्धर्प। ९. राजमार्ग। १०. भि. दृ. १३१॥ ११. अमुक। १२. अटकै (क)। १३. सुन्दर। ८४ भिक्खु जश रसायण
SR No.006279
Book TitleBhikkhu Jash Rasayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages378
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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