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२ हद वांण सुणी हळुकर्मी हरखै, द्वेषी बोल्या धर्म-द्वेषधारी।
सवा डौढ पोहर रात्रि आई, सो, यां नैं कल्पै नहीं इण वारी। हो म्हारा.. ३ भीक्खू कहै दुख नी रात्रि मूंडी, झट सुख-निशरे सोहरी जावै। ___'समीसांझ २ माहै मनुष मूआं सूं, लोकां नैं रात्रि मोटी लखावै॥ हो म्हारा. ४ संत वखाण देवै ते न सुहावै, ज्यांनै रात्रि घणीज जणावै।
दंभ मिट्यां तौ अधिक न दीसै, आ तौ पौहररै आसरै आवै।। हो म्हारा. ५ 'दूहां सहित दीया दृष्टंत दोनूं", पैंतालीसै सैहर पीपार।
तंत चौमास सोजत मैं तेपनैं; उठै हूवौ घणौ उपगार। हो म्हारा. किणहिक स्वाम भीक्खू नै कह्यौ, इम उपगार तौ आछौ कीधौ।
जीव घणां नैं समजाया जुगत सूं, लाभ धर्म रौ लीधौ॥ हो म्हारा. ७ वळता भीक्खू कहै खेती तौ वाई, पिण 'गांम रै गोरवै। पेखो।
सौ खर नहीं आय पड्या है तौ टिकसी, बाकी कठिण है अधिक विसेखो। हो म्हारा. ८ गधा समांन पाखंडी गिणियै, जिहां जारौ विशेष जिणां रौ।
खेती समान धर्म खय कर दै, तिण सूं संग न करणौ तिण रौ॥ हो म्हारा. ९ किण ही कह्यौ देवौ दृष्टंत करला', स्वामीनाथ बोल्या -सुण वायो।
'करड़ौ रोग उठ्यौ गंभीर' केरौ, 'मृदु फूंजाल्या केम मिटायौ।हो म्हारा. १० हलवांणी२ रा डांम२ लागां हुवै हलको, गंभीर१४ रौ रोग गिणायो।
करडौ मिथ्यात रोग मिटावण काजै, करड़ा दृष्टंत कहायो। हो म्हारा. ११ किण ही स्वामीजी नैं पूछा कीधी, कच्ची बुद्धि वाळौ समझै न कांई?
मुनि भीक्खू कहै१५-दाल मूंग मोटो री, थिर दाल चणां री पिण थाई।। हो म्हारा. १. भि. दृ. १८
११. हल्के हाथ से खुजली करने पर। २. सुख की रात्रि।
१२. लोहे की लम्बी छड़, जिसका एक ३. सायं काला
सिरा तीक्ष्ण और नोकदार होता है। ४. एक दृष्टंत उक्त दोहों में और दूसरा १३. दागना। ढाल के पद्यों में।
१४. गहरा वायु विकार। ५.भि.दृ. २१।
१५. भि. दृ. १५७। ६. गांव के किनारे।
१६. फिर (क)। ७. जाड़/झुंडा ८. कड़ा। ९. भि. दृ. ६९। १०. विपम वात-रोग।
भिक्खु जश रसायण : ढा. २७