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२ स्वाम कहै तुम्हे सांभळो रे, पाप उदय थी पिछांण। इहभव मैं पिण दुख ऊपजै रे, सुण इक हेतु सयांण।
तंत दृष्टंत भीक्खू तणा।। ३ एक भिख्यारी भीख मांगतौ रे, फिरतां-फिरतां पुर माय।
पंच रोटी रौ आटौ पामीयौ रे, अंतर भूख अथाय॥ तंत. ४ रोटी करण लागौ तदा रे, भिख्याचर भाग हीन।
एक रोटी नैं उतारनै रे, चूला लारै मेली दीन॥ तंत. ५ एक रोटी तवै सिक रही रे, एक खीरै सिकै आंम।
एक रोटी रौ लोयौ हाथ मैं रे, लोयौ एक कठोती मैं तांम॥ तंत. ६ स्वांन एक आयौ तिण समैं रे, पाप तण परमाण।
लोयौ कठोती हैं ले गयौ रे, जद ते स्वांन लारै न्हाठौ जांण।। तंत. ७ स्वांन लारै भिख्याचर न्हासतां रे, आखुर पडीयौ अचांण। ___हाथ माहै जे लोयौ हुतो रे, ते धूळ मैं बीखरीयौ पिछांण।। तंत. ८ ततखिण पाछौ आवी तदा रे, देखण लागौ तिवार।
चूला लारै रोटी पड़ी हुँती रे, ले गइ तास मंजार॥ तंत. ९ तवा तणी तवै बळ गई रे, खीरा री खीरै हुइ गई छार।
पांचू विलाई इण रीत सूं, पाप तणा फळ धार॥ तंत. १० इमहिज एक भागां थकां, पांच जावै परवार।
दोषण थापै जे जांण नैं, भव-भव होवै खुवार ॥ तंत. ११ दोष सेव्यां डंड संपजै रे, डंड जितोई भागंत।
नवी दिख्या आवै जेहथी रे, ते दोष सेव्यां सर्व जावंत॥ तंत. १२ भीखू स्वाम भली परै रे, दीधौ वारू दृष्टंत।
हळुकर्मी सुण हरखीयै रे, भारी कर्मा भिड़कंत॥ तंत. १३ पचीसमी ढाळ परवरी रे, भीक्खू बुद्धि भरपूर।
नित्य प्रति हूं वंदना करूं रे, 'पौह ऊगते सूर ॥ तंत.
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१. काठ का बर्तन। २. अचानका ३. राख।
४. अपने आप, बिना जानकारी के। ५. विनष्ट। ६. प्रभात के समय।
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भिक्खु जश रसायण