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________________ दूहा अजांण केयक इम कहै, म्हांरै म्हे तौ ओघौर मुंहपती, वांदा २ भीक्खू कहै ओघा भणी, तौ औघौ हुवै ऊंन रौ, वंदणा ५ ३ पग गाडर ना धिन है माता तूं सही, ४ मूंहपति हुवै कपास नीं, 'कपास जो तिरै मूंहपति वांदीया, तौ वणि धिन है वणि सो ताहरी, हुवै भेष भणी इम वांदीयां, भव-दधि लारै पूजा भूला मैं देखलौ, मारग पूजै तिके, ते सीरै भरी, पुरस्यां देख्यां इसौ, दोषण इम इक व्रत भागां छतां, पांचूं ६ गुण -चौड़े ७ जिण निगुणां नै ८ गुण गोळी' गुण विण ९ एक व्रत १. भि. दृ. २९४ । २. रजोहरण ऊंन गाडर ओघा थी पकरणा, जो तिरै सो ओघा कही, तौ ही मांनवी, किम ठाली ठीकरौ, भाग १ किणहिक स्वाम भणी कह्यौ रे, एक महाव्रत भांगां छता रे, करणी सूं नहि छां सिर गुण ३. कपास का डोडा । ४. गोलाकार पीतल का बड़ा बर्तन । भिक्खु जश रसायण : ढा. २५ किम पंच कीयां करै वणि १३ नों नैं वंदणौ ढाळ : २५ ( कामणगारौ छै कूकड़ो ) ७. मूंहपति केम जो दृष्टंत भीक्खू तणा ॥ निगुण पूजंता आंणीजै लारै मार्ग भूख ए. वरत पांत जाय .भि. दृ. ४१ ॥ थापै न कांम । नांम ॥ तिरंत | उपजंत॥ बात किम तास। पैदास ॥ होय। जोय ॥ एह । तिरेह ॥ जाय । ठाय? पूजाह । दूजाह॥ धपाय। जाय ॥ जांण । पिछांण ॥ ५. गोलाकार मिट्टी का बड़ा बर्तन । ६. हलुओ से । मिलाय । जाय। ७७
SR No.006279
Book TitleBhikkhu Jash Rasayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages378
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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