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________________ दूहा सार। भर्म॥ १ सरधा ऊपर स्वामजी, दीया घणा दृष्टंत। कहि-कहिनैं कितरौ कहूं, न्याय मिलाया तंत॥ २ वलि आचार रै ऊपरै, न्याय मिलाया सार। ग्रंथ वधंतो जाणनै, न कियौ बहु विस्तार।। ३ इंद्रीवादी ऊपरै, काळवादी पर सोय। दृष्टंत पूज दीया घणां, म्हैं बहु न कह्या जोय॥ ४ प्रस्ताविक परगटपण, हेतू हद हितकार। . आख्या भीक्खू ओपता, उत्पत्तिया अधिकार। ५ कथा नंदी सूत्रे कही, च्यार पहिछांण। तिण कारण दृष्टंत सुण, चमकौ मती सुजांण॥ ६ केसी स्वामी पिण कह्या, सखरा हेतू इमहिज भीक्खू जांणजो, पंचम काल मझार॥ ७ मूरख जन दृष्टंत सुण, उलटा बांधै ___ कर्म। खबर नहीं जिन धर्म री, भूला अज्ञांनी ८ हळुकर्मी दृष्टंत सुण, पांमैं अधिको पेम। भारीकर्मा सांभळी, बोलै 'भावै तेम॥ ९ विचरत-विचरत आवीया, सैहर कैलवे स्वामा ठाकुर मोहकमसींगजी, वांदण तांम॥ ढाळ : २३ (भावै भावना) १ सहु परषद सुणतां, सिरदार सुहायो रे। __मोहकमसिंगजी , बोलै इम वायो रे॥ भीक्खू ऋष भणी ॥ २ गांम-गांम री विनती, अति आपनैं आवै रे। जन बहु देश नां, सहु आपनैं चाहवै रे। भिक्खू ऋष भला। १. इच्छानुसार २. भि. दृ. ८७। PREETEEEEEEEEEEEEEEEE आया में भिक्खु जश रसायण : ढा. २३ ।
SR No.006279
Book TitleBhikkhu Jash Rasayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages378
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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