SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 104
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २ खाई लुटाया जो पाप है, पाणी पायां हो किम होसी पुन्य? दोनं बरोबर देखलौ, दोनं हो कण रहित है सुन्य।। तंत. ३ 'अव्रती मैं' अन्न-धन दीयां, भेषधारी हो थापै धर्म नै पुन। स्वाम भीखू दीयौ सोभतौ, हद हेतु हो सुणजो तन-मन।। तंत. ४ लाय मां सूं का?' दूजी लाय मैं, धन न्हाख्यां हो काम न आवै ते धार। आप कनैं धन अव्रत मैं हुँतौ, अव्रती नैं हो दीयो अव्रत मझार।। तंत. ५ लाय लागां गृहस्थ रौ घर जळ, बळतौ देखी हो किणहि धन काढ्यौ बार। ले न्हांख्यौ दूजी लाय मैं, ततखिण आयौ हो सेठ पास तिवार॥ तंत. ६ अहो सेठजी तुझ घर आग थी, सखरी वस्तु हो धन काढ्यौ में सार। सेठ सुणी हरख्यौ सही, ते धन किहां छै हो आपौ वस्तु उदार।। तंत. ७ ओ कहै-न्हांख्यौ दूजी आग मैं, सेठ जाण्यौ हो पूरौ मूंहर्ख सोय। लाय मां स्यूंकाढी न्हांख्यौ लाय मैं, काम न आवै हो तिण लेखै कोय।। तंत. ८ अव्रत रूप लाय हुंती आपरै, अव्रती नैं हो दीधौ और नैं धन। लाय लगाई और रै, प्रत्यख देखौ हो तिण मैं किम हुवै पुन्न? तंत. ९ श्रावक रै त्याग ते तौ व्रत सही, अव्रत जाणौ हो बाकी रह्यौ आगार। अव्रत सेवावै और री, तिण माहै हो धर्म नहीं लिगार।। तंत. १० अव्रत-व्रत न ओळखै, भेषधारी हो करै भेळ-संभेळ। दृष्टंत स्वाम दीयौ इसौ, घी तंबाखू हो भेळ्यां कदेय न मेळ।। तंत. ११ ओषध' जीभ आंख्यां तणौ, आंहमौ-सांहमौ हो घाल्यां दोनूं विलाय। ज्यूं अव्रत मैं धर्म सरधीयां, पाप वरत मैं हो सरध्यां दुरगति जाय।। तंत. १२ सोरीगर रा घर मैं सोर वासदी', न्यारा राख्यां हो घर विणसै नाय। ज्यूं व्रत अव्रत फळ जूजूआ, जन जाण्यां हो समगत न जळाय।। तंत. १३ प्रगट पसारी रै पारखा, न्यारा राखै हो मिश्री सोमल न्हाळ। ज्यूं धर्म-अधर्म खातौ जूजूऔ, सैंठी समगत हो सुद्ध सरध्यां संभाळातंत. १. अव्रत में (क)। २. काढ़ (क्व.)। ३. मूरख (क)। ४. विरत इवरत की चौपाई ढा. ४ गा. ६,७। ५. विरत इवरत की चौपाई ढा. ४ गा. ९,१०। ६. बारूद बनाने या बेचने वाला। ७. बारूद। ८. अग्नि। ९. एक प्रकार का क्षार, जो मिश्री जैसा ही लगता है। भिक्खु जश रसायण : ढा. १९ ५७
SR No.006279
Book TitleBhikkhu Jash Rasayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages378
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy