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दूहा
किणही भीक्खू नै कह्यौ२- असंजती
अवलोय। तिण नै दांन देवा तणा, त्याग करावौ मोय।। २ भीक्खू स्वामी इम भण- सरध्या मुज वच सोय।
प्रतीतीया रुचिया पवर, जिण सूं त्याग सुजोय।। ३ कै म्हांनैं भांडण भणी, करै इसा पचखांण?
इम कहि कष्ट कियौ अतहिरे, सखर स्वाम बुद्धिवांन।। ४ किणहिक भीक्खू नै कह्यौ - टोळावाळा
ताहि। प्रत्यख पुन्य परुपै नहीं, सावज दांन रै माहि।। ५ स्वाम कहै-काइ असतरी, जल लोट्यौ भर जांण।
म्हारै हाटै संपजो, कही किणी नै वांण॥ ६ नाम पिउ नौ नां लीयौ, पिण सूंप्यौ कर सांन ।
इम सांनी कर पुन कहै, पुन री श्रद्धा पिछांण॥ ७ किणहिक स्वामी नैं कह्यौ, पडिमाधारी
दांन निर्दोषण तसुं दीयां, स्यूं फळ कहौ विसेख? ८ स्वाम कहै-लै सूझतौ, पडिमाधार
पिछांण। तसुं फळ होवै ते सही, दैण वाला . नै जांण॥ ९ लैण वाला नैं पाप कहै, पाप लगायौ दातार। तिण नै पुन्य किहां थकी, स्वाम जाब श्रीकार॥
ढाळ : १९
(वीर सुणौ मोरी वीनती) १ काचौ पांणी पायां माहै पुन्य कहै, स्वामी दीधौ हौ तेहनैं दृष्टंत। कोइ खाई लुटावै पारकी, सावज थारै लेखे हो इण मैं पुन एकंत।
तंत दृष्टंत भीक्खू तणां ॥ध्रुवपद।।
पेख।
१. किणहिक (क)। २. भि. दृ. ११८। ३. अति ही (क)। ४.भि. दू.६१।
५. संकेत। ६. भि. दृ. २०७। ७. मैं (क)। ८. किले के चारो ओर रक्षार्थ खोदी हुई नहर के रूप में पानी से भरी खाई।
भिक्खु जश रसायण