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१४ कोई कहै-'गृहस्थ रो छांदौ"अछै, दान देवै हो गृहस्थ नैं देख।
भीक्खु कह्यौ-छांदा मैं तो धूळ है, घृत तौ ? कूड़ी मैं संपेख। तंत. १५ खांड घृत सुद्ध मिल्यां, सखरा कहियै हो लाडू सरस, सवाद।
ज्यूं चित वित पात्र तीनूं जुड्यां, अति फळ लहिये हो भव जल तिरियै अगाध।तंत. १६ घृत खांड बिहुं सुद्ध घणा, मैदा री जागा हो लाद है माय।।
ज्यूंचित वित दोनूं चौखा मिल्या, पात्र जागां हो असाधू नैं वहिराय। तंत. १७ घृत मैदो चौखा घणां, खांड जागा हो माहै घाली धूळ।। ___ज्यूं चित पात्र दोइ सुद्ध जुड्या, वित जागा हो असूझतो विस तूल ॥ तंत. १८ खांड मैदो चौखा खरा, वित जागा हो माहै घाल्यौ गोमूत।
ज्यूंवित पात्र दोनई सुद्ध जुड्या, चित जागा हो दैण वाळौ कपूत।। तंत. १९ घृत री ठौर गोमूत है, खांड ठामै हो घाली धूळ महाखार। ____ लाद मैदा री जायगा, आवी मिलिया हो तीनूं अधिक असार॥ तंत. २० ज्यूं दैणवालौई असूझतौ, वस्तु दीधी हो असूझती जबून्य।
अव्रत माहि लेवाळ अंगीकरी, प्रत्यख पेखौ हो इण मैं किम हुवै पुन्य? तंत. २१ चित वित पात्र चोखा मिल्यां, कर्म निर्जरा हो पुन्य बंध कहिवाय।
एक अधूरौ तीनां मझै, थिर चित देखौ हो तिण मैं पुन्य न थाया। तंत. २२ दृष्टंत ऐसा भीक्खू दीया, स्वामी मेल्या हो सूत्र नैं न्याय संध। ____यां विण इसडी कुण कथै, पूर्वधारी हो जैसा भीक्खू प्रबंध॥ तंत. २३ पंचम आरै परगट्या, आप औजागर हो आप सूं अनुराग।
हूं पिण हिवडां ऊपनौं, साची सरधा हो पांमी ए मुझ भाग।। तंत. २४ आखी ढाळ उगणीसमी, चित उमग्यौ हो भीक्खू आया चीत। ___याद आयां हो हीयौ हूलसै, गुण गावत हो हूऔ जनम पवीत।। तंत.
१. गृहस्थ का चालू व्यवहार। २. स्वामी जी ने इसको दूसरे अर्थ में लेते हुए कहा-छांदा में तो धूल होती है। इसका अर्थ है--घी के कुप्पी पर ढक्कन के रूप में दी जाने वाली दांट। कपड़े में मिट्टी/धूल डालकर उस पर लेप लगा दिया जाता है। जिससे घी बाहर नहीं आता।
३. घी रखने का बर्तन ४. देने वाला। ५. वस्तु। ६. लेने वाला। ७. लीद- हाथी,घोड़े, गधे आदि की। ८. तुल्य। ९. उद्योतकार। १०. स्मृति में।
भिक्खु जश रसायण