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________________ सप्तमः सर्गः । २११ ३६. अतो द्विधारः खड्गो क्षुद्रः, कोऽयं रक्षोपायोऽरुद्रः। तेनालोचि ततो निरपायः, कार्यः समयानामध्यायः॥ इसीलिये यह बड़ी दुधारा खड्ग है । इस दुधारा खड्ग से मेरी रक्षा हो ऐसा विचार कर उन्होंने यही निर्दोष उपाय निकाला कि मुझे इससे बचने के लिए शास्त्रों का अध्ययन ही करना चाहिए । ३७. अस्मिन् दुःषमकालकराले, समयसमयपतनातिविशाले। ____ क्व च गच्छामः क्व च पृच्छामः, क्व च शरणाय श्रमिता यामः॥... " यह भयंकर दुःषम काल है। यह निरंतर ह्रास की ओर बढ़ रहा है। ऐसे कराल काल में हम कहां जाएं ? किससे पूछे ? और श्रान्त होने पर किसकी शरण लें ? ३८. सम्प्रति ये मुनयोऽपि समस्ताः, प्रायः स्वार्थाराधे न्यस्ताः। कामितकार्ये स्यादाबाधा, तत्र सदर्थाबाधे व्याधाः ॥ वर्तमान में जो मुनि हैं वे सभी प्राय: अपने स्वार्थ को सिद्ध करने में लगे हुए हैं और यदि अपने इच्छित कार्य में कहीं बाधा आती है तो वे यथार्थ की घात करने के लिए शिकारी बन जाते हैं। ३९. कः प्रतिभूः को न्यायाधीशः, को विश्वस्तो जैनगिरीशः। यत् प्रामाण्यं यस्याऽऽतन्वे, माध्यस्थ्यं खलु यस्याऽऽमन्वे ॥ __ आज (शास्त्रों के अतिरिक्त) कौन यहां साक्षी है ? कौन न्यायाधीश है ? कौन विश्वस्त है ? तथा कौन जिनवाणी का ज्ञाता है जिसको हम प्रमाण मानें और मध्यस्थरूप में स्वीकार करें। ४०. समयादपरा कापि न सिद्धिः, समयादपरा कापि न लब्धिः। कापि न समयादितरा ऋद्धिः, कापि न समयपरा समृद्धिः ॥ शास्त्रों के अतिरिक्त न तो कोई दूसरी सिद्धि है, न कोई लब्धि है, न कोई ऋद्धि है और न कोई समृद्धि है। ४१. सन्तु कियन्तः पठिताः सन्तः, ताकिकभाष्यचणा भगवन्तः । समयाकृष्टाः सर्वे श्रेष्ठाः, समयाक्रमणा अतिशो भ्रष्टाः ॥ मुनि चाहे कितने ही पढ़े-लिखे हों, तार्किक हों, प्रवक्ता हों, ज्ञानी हों, यदि वे आगम वाणी के अनुकूल हैं तो वे श्रेष्ठ हैं और यदि वे आगम का, अतिक्रमण करते हैं तो वे अति निकृष्ट हैं ।
SR No.006278
Book TitleBhikshu Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni, Nagrajmuni, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages350
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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