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वर्ण्यम्
मूनि भिक्ष ने छठा चातुर्मास सादडी में बिताया। वहां से वे राजनगर मेवाड में गए। इसमें है-राजसमन्द का प्राकृतिक वैभव, अरावली पर्वतमाला तथा मेवाड के प्रतापी और पराक्रमी शाशकों का वर्णन । आगमों के पठन-पाठन से राजनगर के श्रावकों में साधुसंघ के आचार-विचार संबंधी विचिकित्सा और वंदना-व्यवहार का परिहार । आचार्य रघुनाथजी द्वारा श्रावकों को समझाने के लिए अनेक साधुओं को भेजना अन्त में मुनि भिक्षु को वहां जाने का निर्देश''मुनि भिक्षु द्वारा श्रावकों से विचार-विमर्श तथा यह अन्तर अनुभूति कि श्रावकों का पक्ष सर्वथा असत् नहीं है । श्रावकों को मुनि भिक्षु पर पूर्ण विश्वास । मुनि भिक्षु का आत्म-मंथन आदि।