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पांचवां सर्ग
प्रतिपाद्य : राजनगर वास्तव्य श्रावकों के मन में
साधु-संघ के आचार-विचार के प्रति विचिकित्सा श्रावकों द्वारा वंदन-विधि का परिहार""उनको प्रतिबोध देने के लिए मुनि भिक्षु का राजनगर में आगमन और श्रावकों से विचार
विमर्श । श्लोक : १६३ छन्द : वसन्ततिलका