SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 139
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चतुर्थः सर्गः ११३ ५०. प्रागेव तं बैश्रवणालया'ऽगं', संभूषयामास ऋषीश्वरः सः। तस्माच्च तत्रैव महानुभावादभ्यागतः पर्वपरिच्छदेन' ।। इस नव युवा विरागी के आने के पहले ही आचार्य श्री रघुनाथजी सपरिवार उस वट वृक्ष को अलंकृत कर चुके थे। अत एव वह विरागी ठाटबाट से पारिवारिक तथा पौरजनों के साथ वहां आ पहुंचा। ५१. संसारभारानिव भूषणानि, सन्त्यज्य धीरो धृतसाधुवेषः । क्षिप्रं तदाचार्यसमीपमस्थान्, मन्ये वपुष्मान् प्रशमो रसोऽयम् ॥ वह धैर्य धुरन्धर भिक्षु संसार-भार के समान ही आभूषणों के भार को अपने शरीर से उतारकर साधु वेष में शीघ्र ही गुरु के सन्मुख आकर बैठ गया । तब ऐसा लग रहा था कि मानो स्वयं प्रशान्तरस ही मूर्तिमान् होकर वहां आ बैठा हो। ५२. अक्षुण्णवैराग्यसुधाप्रसारैः, सन्तर्पयन् दर्शकदर्शनानि । नम्रोऽभ्यधान् नम्रतरं भवन्तो, यच्छन्तु दीक्षां यमिनामधीश ! ॥ अक्षुण्ण वैराग्य सुधा के प्रसार से दर्शक व्यक्तियों की आंखों को तृप्त करता हुआ वह विनीत दीक्षार्थी विनम्र भावों से आचार्य को प्रार्थना करने लगा-'गुरुदेव ! अब मुझे दीक्षा प्रदान करने की कृपा करें।' ५३. रत्नाभ्रशैलामृतकान्तिमार्गशीर्षाऽसितद्वादशवासरे तैः। पञ्चाधिकविंशतिवार्षिकोऽसौ, सन्धावृतरुच्छ्वसितैरदीक्षि ॥ विक्रम सम्बत् १८०८ मार्गशीर्ष कृष्णा द्वादशी के पुनीत दिन पच्चीस वर्ष के तरुण भिक्षु को संघपति ने समस्त संघ के समक्ष दीक्षा प्रदान की। ५४. सौम्येन सोमः कमनेन कृष्णो, रेवन्तके नाम्बुजपञ्चशाखः । प्राचीनबहिश्च यथा जयेन, दीप्तोऽमुनाऽयं रघुनाथसूरिः ॥ १. वैश्रवणालयः-वट (स्याद् वटो वैश्रवणालयः-अभि० ४।१९८) २. अगः-वृक्ष (वृक्षोऽगः शिखरी अभि० ४ १८०) ३. पर्वपरिच्छदः-दीक्षा समारोह में सम्मिलित होने वाले लोग। ४. सौम्यः-बुध नक्षत्र (बुधः सौम्यः प्रहर्षुल:- अभि० २।३१) ५. कमनः-कामदेव (कमनः कलाकेलिरनन्यजोऽङ्गजः-अभि० २।१४१) ६. रेवन्तकः- सूर्यपुत्र (अभि० २०१७) ७. अम्बुजपञ्चशाखः-सूर्य । ८. प्राचीनबहिः-इन्द्र (प्राचीनबर्हिः पुरुहूतवासवी-अभि० २।८५)
SR No.006278
Book TitleBhikshu Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni, Nagrajmuni, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages350
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy