SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 116
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रीभिक्षमहाकाव्यम् ७७. कुयुक्तिभिः स्वस्वविबद्धवप्रे, परैः परिक्षिप्तविमुग्धलोकान् । विभिद्य तद्वारमयं विमोक्ता, विपाटयिष्यन् परिधि तदीयम् ॥ 'अन्यान्य तीथिकों ने अपनी कुयुक्तियों से भोले-भाले लोगों को बहकाकर अपने-अपने दलबंदी के घेरे में बांध रखा है। तुम्हारा पुत्र उस दलबंदी के द्वार का भेदन कर, उसकी परिधि को समूल उखाड़कर उन लोगों को मुक्त कर देगा।' ७८. प्रावादुकानन्यतरानजस्रं, विजित्य तत्त्वेन पराय युक्त्या । सुमेरुशैलेन्द्र इवान्तराले, स्थिरत्वमेतोन्नतमस्तकोऽयम् ।। 'तुम्हारा पुत्र अन्यान्य प्रावादुकों को शुद्ध तात्विक युक्तियों से जीत लेगा और उनके बीच अपना शिर ऊंचा किए सुमेरु पर्वत की भांति अडोल रहेगा।' ७९. अतस्त्वमाज्ञामविलम्बमेवोच्चलेन विश्राणय शाणसंवित'! विधेहि वैयुष्ट विभागिनं मां, त्वरस्व सन्धेहि विदेहमार्गम् ॥ 'हे विवेकिनी ! अपने अन्तर् मन से इसे संयम के लिये आज्ञा प्रदान कर, इसे शीघ्र ही मोक्ष के प्रशस्त मार्ग की ओर लगा और जागरण के इस उषाकाल में मुझे भी इसका विभागी बना।' ८०. मतं ततस्तद्वचनं तयाऽथ, व्रतित्वपर्यायसुदुष्करत्वम् । निदर्शयन्ती वदति प्रतीत्य, स्वनन्दनं नन्दितवक्त्रपद्मम् ॥ माता दीपां ने रुघनाथजी की बात स्वीकार कर ली। पर अपने आत्मविश्वास के लिये उसने आनंदित मुख कमल वाले अपने पुत्र को संयमसाधना की दुष्करता बतलाते हुए कहा८१. दृढः पथश्चेतनसाधनायाः, कृपाणधारापरिधावनीयम् । भुजौजसाब्धेस्तरणं सुदद्भिरयोमयश्रीधरमन्थ'चय॑म् ।। 'वत्स ! आत्म-साधना का पथ तीक्ष्ण खड्ग धारा पर चलने, भुजबल से समुद्र को तैरने तथा कोमल दांतों से लोहे के चनों को चबाने जैसा कठोर १. पराय॑म्-प्रधान, मुख्य । २. उच्चलं-अन्तःकरण (स्वान्तं गूढपथोच्चले–अभि० ६।५) २. शाणसंवित्-कसौटी पर कसा हुआ ज्ञान-विवेक । ४. वैयुष्टं-प्रभात, उषाकाल । ५. सुदभिः --अच्छे-कोमल दांतों से। ६. श्रीधरमन्थः-चना । (यथा-हरिमन्थक:-अभि० ४१२३७)
SR No.006278
Book TitleBhikshu Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni, Nagrajmuni, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages350
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy