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________________ तृतीयः सर्गः ७२. व्रतप्रसङ्गा करुणान्तरङ्गा, पवित्रताङ्गा प्रशमोत्तरङ्गा। समानसङ्गोवनयावहाङ्गा, प्रवत्तितातः परमेशगङ्गा ।। 'वह इस संसार में परमात्म-वाणी रूप गंगा को प्रवाहित करने वाला होगा। वह वाणी केवल संयम से ही प्रसंग रखने वाली, करुणा से ओतप्रोत, पवित्र अंगो वाली, प्रशान्त रस से तरङ्गित, सार्वजनीन तथा स्वभाव से ही ऊंची बहने वाली तथा औरों को भी ऊंचा उठाने वाली होगी।' ७३. जिनेन्द्रमार्गच्युतकांदिशीक'जगन्महारण्यपथस्थितानाम् । नृणामयं दर्शयिता सुमार्ग, मरीचिमालीव कृपादृष्ट्या ॥ 'जैनेन्द्र मार्ग से च्युत, भयाकुल मानव संसार रूपी अटवी में भटक रहे हैं। उनको यह अपनी कृपा दृष्टि से सूर्य के समान ही सही मार्गदर्शन देने वाला होगा।' ७४. वियोगसंयोगसमीरणेन, क्षिपत्समन्ताद्विषयेन्धनेन । प्रदीप्तरागादिदवानलेन, ज्वलज्जगद् यास्यति शांतिमस्मात् ॥ ___हे दीपे ! रागद्वेष रूप महान् दावानल से यह संसार सुलग रहा है। इसमें संयोग-वियोग रूप हवाएं चल रही हैं और विषयरूप इन्धन चारों ओर से इसमें पड़ रहा है। ऐसे जलते हुए संसार को तुम्हारा पुत्र ही शांति प्रदान करने वाला, बुझाने वाला होगा।' ७५. कुवासनाध्यासितमोहजाले, जगज्जनानां नयने नितान्तम् । स्वबुद्धिनिष्णातनिशात शस्त्रादसौ प्रमाजिष्यति पुण्यपुञ्जः॥ 'इस संसार में मनुष्यों की आंखों पर कुवासना आदि दोषों से उत्पन्न सघन मोह की झिल्ली छा गई है। यह पुण्यपुञ्ज तुम्हारा पुत्र अपनी निपुण बुद्धिरूप तीक्ष्ण शस्त्र से उसका परिमार्जन कर देगा, आंख की पुतली पर चढी झिल्ली को साफ कर देगा।' ७६. अबोधदुर्बोधविपाशबद्धान्, कदाग्रहः संग्रसितान् मनुष्यान् । निरासिता यो भुजगेन्द्रपाशात्, सुकण्ठमुख्यानिव रामचन्द्रः॥ अज्ञान और दुर्ज्ञान के पाश से बंधे हुए तथा कदाग्रहों से ग्रसित मानव को यह वैसे ही मुक्त कर देगा, जैसे नागपाश से बन्धे हुए सुग्रीव आदि को श्रीरामचन्द्र ने। १. कान्दिशीकः-भय से पलायित (कान्दिशीको भयद्रुतः-अभि० ३।३०) २. निशातं-तीक्ष्ण (स्यान्निशातं शितं शातं-अभि० ६।१२०)
SR No.006278
Book TitleBhikshu Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni, Nagrajmuni, Dulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages350
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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