________________
सज्जनों ने इहलोक के कल्याण की प्राप्ति के लिए मन्वादि - उपदिष्ट नीति मार्ग द्वारा निर्दिष्ट आचरण किया है। वह हमें पूर्व काल के विद्वानों के सम्बन्ध से ही प्राप्त है। बालक जैसे चलता ही है वैसे इस संसार में कौन अनुगमन नहीं करेगा।
मनुष्य को चाहिए कि वह अपने कुल की मर्यादा में स्थित होकर आचरण करें। उसी का नाम सदाचार है।
महापुरुषों से मान्य और उत्तम विचार वाले दृढचित्त लोग देव का स्मरण किया करें किन्तु गृहस्थ व्यावहारिक नीति ही स्वीकार करते हैं क्योंकि गायों का पोषण केवल अन्नमात्र से नहीं हो सकता । उनको घास की भी आवश्यकता होती है। व्यावहारिक नीति नियमों में कितने ही वचन ऐसे होते हैं जो प्रायः एक दूसरे के विरुद्ध पड़ते है। मनुष्य को चाहिए कि उनमें से जिस को लेकर अपने जीवन का निर्वाह हो सके उस समय उसी को स्वीकार करे, क्योंकि अपना हित कौन नहीं चाहता।
धर्म अर्थ, काम ये तीनों पुरुषार्थ गृहस्थ के करने योग्य है। जो एक साथ परस्पर विरुद्धता लिये हुए हैं। गृहस्थ को चाहिए कि वह अपनी बुद्धिमत्ता से परस्पर अनुकूल करते हुए बर्ताव करें।
प्रात:काल के समय गृहस्थ को देव पूजन करना चाहिए, ताकि सारा दिन प्रसन्नता से बीते। कहा गया है कि दिन के प्रारम्भ में जैसा शुभ या अशुभ कर्म किया जाता है वैसा ही सारा दिन बीतता है।
गृहस्थ को सर्वप्रथम भगवान अरहंत देव की पूजा करनी चाहिए क्योंकि वे शरणागत - वत्सल हैं, वे देवों के देव हैं। तीनों सन्ध्याओं के समय जिन भगवान् का स्मरण करना चाहिए। जिन भगवान् की भक्ति - मुक्ति देने वाली हुआ करती है। समझदार को चाहिए कि अपनी बुद्धि ठिकाने रखने के लिए भगवती सरस्वती की आराधना करे।
गृहस्थ को प्रथमानुयोग, द्रव्यानुयोग, करणानुयोग, चरणानुयोग का अध्ययन करते हुए शब्द शास्त्र, काव्यशास्त्र, व्याकरण शास्त्र, अलंकारशास्त्र, छन्दशास्त्र, आयुर्वेदशास्त्र, कामशास्त्र, निमित्त शास्त्र, ज्योतिष शास्त्र अर्थशास्त्र, संगीतशास्त्र, मंत्रशास्त्र, वास्तुशास्त्र का अध्ययन करके मनुष्य सबमें चतुर कहलाकर अपने जीवन को सम्पन्नता से व्यतीत कर सकता है।'
गृहस्थ को ब्रह्मचर्य आश्रम, गृहस्थाश्रम, वानप्रस्थ आश्रम और सन्यास आश्रम को यथायोग्य आयु अनुसार पालन करना चाहिए। 1. जयोदय महाकाव्य, 2/7 2. वही, 2/8 3.वही, 2/11 4. वही, 2/18 5. वही, 2/19 6. वही, 2/23 7. वही, 2/36 8. वही, 2/41 9 . वही, 2/47-62 10. वही, 2/117