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कवि की दृष्टि में सदाचार ही परम धर्म है। सदाचार के प्रति कवि में अटूट आस्था है। हम अपने जीवन में इन आदर्शों का पालन करेंगे तो निश्चय ही हमारा जीवन सफल हो जायेगा।
काम पुरुषार्थ के प्रति कवि का दृष्टिकोण - कवि ने गृहस्थ के लिए काम पुरुषार्थ की महत्ता बतायी है। संसार में सब भोगों में स्त्रियाँ ही सर्वोत्तम भोग है।
'युवती रत्न जो अनायास ही प्राप्त हो रही है, सुख, शान्ति के लिए उससे बढ़कर संसार में कोई वस्तु नहीं। कारण निश्चय ही इन्द्र जैसे देव श्रेष्ठों ने भी स्त्री या लक्ष्मी की प्राप्ति के उद्देश्य से ही विमानिता स्वीकार कर ली · है।
गृहस्थाश्रम में रहने वाले मनुष्य को कामशास्त्र का अध्ययन भी यत्नपूर्वक करना चाहिए। गृहस्थ की बिना पुत्र के बुरी स्थिति होती है। हमारे धर्म की ऐसी मान्यता है। अतः जो विचारहीन गृहस्थ व्यर्थ के घमण्ड में आकर सन्तानोत्पत्ति के लिए अपनी सहधर्मिणी के साथ में उचित समय पर समागम नहीं करता, वह मूर्ख है। पर स्त्री के साथ समागम अनुचित है। कामी की मनोदशा चित्रित करते हुए कहा है कि वह स्त्री को देखकर ठीक से कार्य नहीं कर पाता है। कामीजन तम स्वभावा नायिका को प्रंशसनीय मानते है।' काम से पीड़ित मनुष्य इतना अन्धा हो जाता है कि अपने ऊपर आयी विपदा को भी नहीं देख पाता है।
स्त्री की मनोदशा प्रस्तुत करते हुए कवि कहते हैं कि स्त्रियों के लिए न तो कोई प्रिय है और न कोई अप्रिय। वे वनों में नयी - नयी घास चरने वाली गायों की तरह नवीन नवीन पुरुषों की और अभिसरण किया करती है।'
स्त्रियों का स्वभाव ऐसा होता है कि वे सोलह वर्ष की युवा पुरुष को मिश्री मिले दूध सा भोगती है। दाढ़ी मूंछ आ जाने पर उसी का खट्टी छाछ की तरह अरुचिभाव से सेवन करती है। दाढ़ी के सफेद बाल हो जाने पर उसे फटी छाछ की तरह देखना भी नहीं चाहती। आश्चर्य है कि वह एक ही पुरुष को तीन प्रकार से देखा करती है।
स्त्रियों के मन की बात को जानना दर्पण में पड़े प्रतिबिम्ब की तरह अत्यन्त गुप्त होता है। इस संसार में कौन पुरुष उनका रहस्य जान सकता है। 1. जयोदय महाकाव्य, 5/16 2. वही, 9/23 3.वही, 2/57 4. वही, 2/124
5. वही, 2/125 6.वही, 7/95, 8/51
7. वही, 11/71 8. वही, 13/40 . 9. वही, 2/147 10. वही, 2/153
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