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गुणी मनुष्य धोबी है, जो समताभाव रुपी पवित्र जल से अपने गुणरुपी वस्त्र को शीघ्र धोता है। वह मैल की रक्षा नहीं करता और विवेक रुपी उत्तम साबुन को लेकर गुणरुपी वस्त्र धोता है।'
मानव स्वयं अपने भाग्य को बनाता है या बिगाड़ता है। हर मनुष्य का कर्तव्य है कि वह मानव जाति के कल्याण के लिए अग्रसर रहे। तभी मानव जाति का सर्वाङ्गीण विकास हो सकेगा।
कविता ज्ञानसागर का धार्मिक दृष्टिकोण - हमारे समाज में अनेक धर्मो का प्रचलन है। सभी लोग अलग - अलग धर्म को मानने वाले हैं। आचार्य ज्ञानसागर जी जैन धर्म को मानने वाले हैं। उन्होंने यत्र - तत्र जैनियों के लिए क्या उचित है तथा क्या अनुचित है अपने जयोदय महाकाव्य में उसका विवेचन किया है। गृहस्थ के लिए बताया है कि वह मनुष्योचित तथा अपने आपके लिए रुचिकर निरामिष भोजन अपने कुटुम्ब वर्ग के साथ एक पंक्ति में बैठकर किया करें। थाल में कुछ छोड़कर ही सबके साथ उठे। मांसाहारी भोजन मानवता का नाश करता है।
धर्म व्यक्ति को कर्तव्यों, सत्कर्मों की ओर ले जाता है। जैन धर्म से हमें लौकिक व पारलौकिक दोनों प्रकार के सुख प्राप्त होते हैं। धर्म पुरुषार्थ की तो कौए की आँख में स्थित कनीनिका के समान दोनों ही जगह आवश्यकता है। धर्म के बिना मनुष्य सुख प्राप्त नहीं कर सकता है क्योंकि धर्म ही मनुष्यों के सुख का हेतु माना जाता है। क्योंकि उसके करने से ग्राम शार्दूल भी देव हो सकता है।
___ धर्म के बिना जीवित रहना कठिन है। धर्म का हमारे जीवन में बहुत महत्त्व है। धर्म के प्रभाव से दोनों ने मनुष्य जन्म प्राप्त किया। जो मनुष्य धर्म को नहीं मानता है वह मनुष्य अमृत को छोड़कर स्वयं विष को पीता है।
धर्म से हमें सभी प्रकार के सुखों का अनुभव होता है। इन्द्रियजन्य सुख भी धर्मरुपी वृक्ष के फल है।
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि कवि धर्मनिष्ठ तथा धर्मपरायण है और धर्म सम्मत समाज का पक्षधर है।
आचार्य ज्ञानसागर और जीवनमूल्य - जीवनमूल्यों का हमारे जीवन में विशिष्ट महत्त्व है। हमारे संस्कार, शिक्षा-दीक्षा, आदर्श सब जीवन मूल्यों पर आधारित है।
1: जयोदय महाकाव्य, 26/66 2. वही, 2/107 4. वही, 12/99
5. वही, 2/10 7. वही, 23/50
8. वही, 25/83
3.वही, 2/109 6.वही, 23/49