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वाला नहीं है।
धतूरा के आसव से उन्मत्त हुआ अज्ञानी मनुष्य नरमते मनुष्य के लिये आदृत इष्ट धन के संचय में आनन्द मानता है।
लक्ष्मी एक को छोड़कर अन्य को प्राप्त होती है। अत्यन्त उद्दण्ड है। लक्ष्मी का स्वभाव ही चंचल है। मनुष्य जन उसको हृदय से चाहते है। जिनके नाम के अक्षर कल्याण, महत्व और लाभ इन तीनों शब्दों के आदि अक्षर से निहित है। अर्थात् जिसका कमला नाम है। जो गृहस्थों के द्वारा सेवनीय है। हे देवि आप मेरे हृदय में स्थिर रहें । - सिद्धि व सफलता के लिए विनायक गणधन का ही स्मरण करना चाहिए।
व्यक्ति को बिना लोभ के अर्थोपार्जन करना चाहिए। दूसरे के धन से कभी ईर्ष्या नहीं करनी चाहिए। मनुष्य को अपने धन से सन्तुष्ट रहना चाहिए। अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए धनोपार्जन करना जरुरी है।
कविवर ज्ञानसागर का मानवता के प्रति दृष्टिकोण - आचार्य ज्ञानसागर जी की मानवता के प्रति पूर्ण आस्था. है। वंश निर्माताओं ने कुलों का निर्माण कर उन कुलों के लिए यह अवश्य कर्त्तव्य निर्दिष्ट किया है। अतः अपने कुल की मर्यादा से स्थित मनुष्य कुलोचित आचरण करे, उसी का नाम सदाचार है। मनुष्य को अपने आचार - विचार में एकता बनायी रखनी चाहिए। मानव कल्याण की भावना को कवियों ने भिन्न - भिन्न रूपों में प्रस्तुत किया है। किसी ने दान के द्वारा, किसी ने अपने प्राणों का त्याग करके, किसी की विपत्ति में साथ देना आदि।
विवाहित की पवित्र भावना को रखने वाला और स्थितिकारी मार्ग का आदर करने वाला गृहस्थ यथाशक्ति अपने न्यायोपार्जित द्रव्य का दान भी करता रहे। यों पेट तो कुत्ता भी शीघ्र भर ही लेता है। सत् पुरुषों की चेष्टाएँ तो अपने और पराये दोनों के कल्याण के लिए ही होती है।
भावना की पवित्रता सदा कल्याण के लिए ही कही गयी है फिर भी भोगाधीन मन वाले को कम से कम सदाचार का अवश्य ध्यान रखना चाहिए क्योंकि भगवान् सर्वज्ञ ने सदाचार को ही प्रथम धर्म बताया है।'
मानवता के बिना मनुष्य की कल्पना नहीं की जा सकती है। इसके बिना मनुष्य पशु तुल्य है। 1. जयोदय महाकाव्य, 25/3 2. वही, 25/14 3.वही, 26/60 4. वही, 19/36
5. वही, 19/40 6.वही, 2/8 7. वही, 2/91
8. वही, 2/104 9.वही, 2/75
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