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पूजा करने का ढंग कुछ भी हो किन्तु उनका उद्देश्य मूलतः भगवान् की पूजा होने पर उसमें कोई दोष नहीं है। जैसे नर्तकी मूलसूत्र रस्सी का आश्रय लेकर तरह – तरह से नाचती है तो उसका नाचना दोषयुक्त नहीं माना जाता।
जिनेन्द्र भगवान् के बिम्ब की प्रतिष्ठा संसारी आत्माओं के लिए शान्तिदायक होती है। किसान पशु-पक्षियों से बचाये रखने के लिए ही एक मनुष्याकार का पुतला बनाकर खेत के बीच में खड़ा कर देता है। इससे वह अपने उद्देश्य में प्रायः सफल ही होता है।
गृहस्थ किसी कार्य के आरम्भ में भगवान् जिनेन्द्र का नाम लेकर अपने इष्टदेव का स्मरण करे तो निश्चय ही उसका कार्य सिद्ध होगा किन्तु सदाचार का उल्लंघन करने पर सिद्धि प्राप्त न होगी।
गृहस्थ को चाहिए कि वह मन से सदैव जिन भगवान् का स्मरण किया करें। पर्व के दिनों में तो उनकी विशेष रुप से सेवा भक्ति करें। क्योंकि गृहस्थ के लिए निर्दोष रुप से की गयी जिन भगवान् की भक्ति ही मुक्ति देने वाली हुआ करती है। सफल तथा सुखी गृहस्थ जीवन के लिए गृहस्थ को विविध शास्त्रों का ज्ञान होना चाहिए साथ ही उसे विविध कलाओं में निपुण होना चाहिए।
. गृहस्थ आश्रम में रहने वाले मनुष्य को काम शास्त्र का अध्ययन भी यत्नपूर्वक करना चाहिए अन्यथा अनेक प्रसंगों में धोखा खाना पड़ता है।
गृहस्थ को निमित्त शास्त्र या ज्योतिष शास्त्र का अध्ययन भी करना चाहिए।
गृहस्थ को अर्थशास्त्र का ज्ञाता होना जीवन यात्रा के लिए आवश्यक है। गृहस्थ वास्तु शास्त्र का भी अध्ययन करें, ताकि उसके द्वारा अपना निवास स्थान किसी तरह बाधाकारक न हो। इसके अतिरिक्त और भी जो लौकिक शास्त्र है उनका भी अध्ययन करने वाला मनुष्य सबसे चतुर कहलाकर अपने जीवन को सम्पन्नता से बिता सकता है।
____ भारतीय संस्कृति में दान और अतिथि - सेवा की बड़ी महत्ता है। वक्ष्यमाण पंक्तियों में कवि ने गृहस्थ के लिए इन दोनों को अपरिहार्य माना है। मधुर सम्भाषण पूर्वक अपनी शक्ति के अनुसार योग्य अन्न और जल का दान करते हुए अपने घर पर आये अतिथि का समीचीन रुप से विसर्जन करना 1. जयोदय महाकाव्य, 2/29 2. वही, 2/31 3.वही, 2/35 4. वही, 2/37
5. वही, 2/57 6.वही, 2/58 7. वही, 2/59
8. वही, 2/62
गृह