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__ इससे ज्ञात होता है कि कवि ने कोई भी पक्ष अपने काव्य में अछूता नहीं छोड़ा। काव्य सौन्दर्य के लिए सभी पक्षों का समीचीन वर्णन किया है। जयोदय महाकाव्य में पशु - पक्षियों एवं वृक्षों का वर्णन -
जयोदय महाकाव्य में कवि ने बड़ी से बड़ी बात को पशु-पक्षी आदि के माध्यम से सरलता पूर्वक कहकर अपने वैदुष्य को दर्शाया है। एक ही विषय के लिए विभिन्न शब्दों का प्रयोग इस काव्य की अलौकिकता को सिद्ध करता है तथा कवि के शब्द भण्डार को भी। अनेक शब्दों को भिन्न - भिन्न रुपों में रखकर जो नये अर्थों की कल्पना की है वह सचमुच ही हृदयग्राही है।
पशु - पक्षियों, पुष्प, पादपों का प्रयोग उपमाओं, रुपकों, उत्प्रेक्षाओं आदि अलंकारों में हुआ है। एक उत्प्रेक्षा है नदी के निकटवर्ती उद्यान में प्रत्येक वृक्ष के नीचे खड़े स्त्री पुरुषों के युगल ऐसे लग रहे थे मानों भोग भूमि के युगल हों।' कवि ने उत्प्रेक्षा के द्वारा उद्यान व वृक्ष का सजीव वर्णन प्रस्तुत किया है। बकरे के माध्यम से कवि ने संसारी मनुष्यों की दशा का वर्णन किया है। जैसे बलि को संकल्पित बकरा शिर पर रखे जो, चावलों को खाते हुए मृत्यु की ओर नहीं देखता, उसी प्रकार यह प्राणी विषय सेवन में विपत्ति नहीं मानता।
पशुओं में सबसे महत्वपूर्ण पशु हाथी है। हाथी भगवान् अजितनाथ का चिन्ह है। कवि ने जयकुमार के हाथी का नाम सुघोष भी बताया है।
जयकुमार के हाथी ने वैरियों के हाथियों को वैसे ही परास्त कर दिया जैसे क्वचित पद वाले जिन भगवान् के वचनों से चार्वाक आदि के वचन खण्डित हो जाते हैं।
आचार्य ज्ञान सागर जी ने अपने काव्य में घोड़े का भी वर्णन किया है। जयकुमार के घोड़े का नाम जय आया है। घोड़े के सन्दर्भ में एक उत्प्रेक्षा की गई है कि युद्ध में घोड़ों की खुरों से गढढे हो गये थे जो शत्रुओं के खून से भरे हुये वे ऐसे लगते थे मानो यमराज की रानियों के वस्त्र रंगने के लिए कुसुम्भ भरे पात्र हो।
कवि ने अन्य पशुओ का भी वर्णन किया है जिनमें अज, गाय', श्व, महिषी' आदि।
पक्षियों में मयूर हंस, राजहंस, चकोर", कबूतर, कबूतरी2 आदि 1. जयोदय महाकाव्य, 14/14 2. वही, 25/35 3. वही, 8/61 4. वही, 8/67
5. वही, 8/49 6. वही, 8/27 7. वही, 22/31
8. वही, 2/11 9. वही, 2/91 10. वही, 22/31
11. वही, 12/51 12.वही, 6/89
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232-2262522000000000000000000000000000068808602005000228006268825306606580 30000000000000000000000000000606465800000000000000000
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